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________________ समाचार जाने । अमारा पत्र तुम्हारे हाथ में देर से आया जिसके कारण विषय तथा चिट्टी नहीं लिखने का कारण लिखा सो जाना । आपके शरीर में बुखार तथा पांव में गांठ दर्द की स्थिति जानकर दुःख हुआ। परन्तु पूर्व संचित उदय होते है, अतः शुभ का उदय हो, शाता होगी। परन्तु औषधोपचार ठीक प्रकार से कीजियेगा। किसी की आवश्यकता हो तो सुखपूर्वक मंगाना । जो एक दो काम के लिए तुमको लिखा है सो ठीक है, तुम्हारे ध्यान में उसकी खटक है, परन्तु शरीर की फुर्ती बिगड़ने से विहार नहीं हो सकता ऐसा लिखा सो जाना। उचित बात है। समझदार को चिन्ता होती ही है। अब तुम्हारे शरीर की प्रवृति का एकांतर अथवा चौथे दिन खबर भेजते रहें। तुम्हारी तबियत सुधरे तब तक बराबर लिखते रहें । हमें तुम्हारे पत्र के नहीं मिलने से अधिक चिन्ता है । अतः पत्र बराबर लिखते रहें। पूरी सावधानी रखनी । जो दो काम हैं उसका अभी अवसर नहीं, इतने में समझ लेना । दयानन्द सरस्वती कहां हैं ? सो लिखना।" उस समय के संवेगी साधुओं, सबके नायक, अनेक साधुओं के सिरमौर पू. श्री मूलचन्द जी महाराज स्वय गच्छाधिपति होते हुए भी पू. श्री झवेर सागर जी म. पर कितना वात्सल्यभाव दर्शाया है। कितनी आत्मीयता दिखाता है । १२५
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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