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शास्त्रोपाठ का मनघडंत अर्थ कैसे किये । इस स्पष्ट समझाकर सारी पुस्तक खोटी सिद्ध की जा सकती है ।'
इस सारी बात से खलबला उठे दृष्टि रागी त्रिस्तुतिक श्रावकों ने पूज्य श्री के सम्मुख अधकचरी रटी हुई दलीलों से बहुत सामना किया । बावेला भी बहुत निकाला फिर भी सत्य-वस्तु के प्रतिवादन का दृढ़रूप से पकड़े रहने वाले पूज्य श्री की प्रतिभा को धुंधली (झांखी) नहीं कर सके ।
अतः बोखलाये हुवे त्रिस्तुतिक श्रावकों ने मुनि श्री सौभाग्य विजय जी म. को पत्र लिख सम्पूर्ण ब्यौरा दिया जिसके जवाब में पूज्य श्री का निम्नानुसार पत्र आया"रतलाम नगरे सवेगी झवेर सागर जी जोगलि. सरवाडा से सौभाग्य विजे की वंदणा वचजो।" अपरंच रतलाम का सरावरकारों कागज आयो थो जीणी मधे श्रवकांय लोख्यों कि आप छपाई थो सेवा पोथी झवेर सागर जी कहते है कि "पोथी खोटी छपाई है और हमने आया सुण्या सो- आधी राते भागी ने चला गया। हमारा डर के मार्या ऐसी बात झवेर सागर जी लोगों ने ऐणी मुजब कहे हैं ऐसा समाचार सरावकाय हमोने लिख्यो छे, सो बात कोणी करे है ? और तुम हमारी छपाई पुस्तक खोटी कोणीतरे से बताई है । जिसका निर्णय उतार के हमारे कु. जल्दी से सिद्धान्त के प्रमारण से लिखो और कदाचित कागज में तुमारे से नहीं
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