________________
तथा चित्तौड़गढ़ आदि प्राचीन तीर्थों की स्पर्शना कर, विहार के क्रम में आने वाले गांवों में संवेगी साधुनों के परिचय घट जाने से बाह्य आचार एक तरफी दलीलों से भरपूर मूर्तिपूजा की असारता का जोरदार प्रचार से बड़े बड़े देरासर गांव में होने पर भी दर्शन करने वाला कोई नही ऐसी स्थिति देखकर थोड़ी स्थिरता करके ग्रामीण जनता की धर्म भावना सतेज बने वैसी बालसुलभ शैली से जिन प्रतिमा की तारकता, श्रावकजीवन का कर्तव्य तथा प्रभु भक्ति आदि विषयों की सुन्दर विवेचना करके जनता में विशिष्ट धर्मप्रेम
जताया ।
पूज्य श्री करेड़ा तीर्थ पर पौष दशमी की श्राराधना करके चित्तौड़ में गढ़ ऊपर के देरासरों की यात्रा करके पो. सु. 2 के मंगल दिन नीचे शहर में पधारे । बाजार में पूज्य श्री का वैराग्य भरा व्याख्यान हुआ । जैन, जैनेतर प्रजा पूज्य श्री की वाणी से आकर्षित होकर अधिक स्थिरता के लिए विनती करते रहे । उसी समय रतलाम के जैन श्री संघ के मुख्य श्रावक आठ से दस की संख्या में प्राये और विनती की कि
" आपने रतलाम शहर में जो बीज बोया था, उसके मीठे फल विशिष्ठ धर्माराधना के रूप में कई लोग मजे से चख रहे थे, किंतु गतचातुर्मास में त्रिस्तुतिक संप्रदाय के मुनि
११०