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________________ (3) मेबाड़ की राज्य सत्ता के परमाराध्य श्री एकलिंग जी महादेव के तीर्थ के पास ही तीन से चार मील यह गांव हैं । विक्रम की आठवी सदी-सोहलबी सदी के मध्य भाग तक अपूर्वं ख्याति प्राप्त तथा धर्म प्रकाश से झिलमिलाता यह प्रदेश उस समय से अदबुध जी के देरासर से प्रारम्भ कर पूर्व दिशा की और केवल देरासर ही देरासर हैं । वृद्ध पुरुषों के कथानानुसार तीन सौ साठ झालर आरती के समय बजउठती थी । इस प्रकार 360 देरासरों के युथ वाले देव कुल पाटक के तरीके कहलाते प्राज के क्रम में "देलवाड़ा" देलवाड़ा हो गया है । आज भी इस इस स्थान पर प्रति भव्य बावन जिनालय बाले चार विशाल जिन मंदिर, गर्भग्रह तथा विशाल जिनबिबों के साथ शोभा प्राप्त कर रहे हैं । और भी इस पुण्य भूमि पर सहस्रावधानी सुरिपुरंदर पू. प्रा. श्री मुनि सुन्दर सूरि म. श्री "संतिकर" जैसे महाप्रभाविका स्तोत्र की 13 गाथाओं की भी संघ हितार्थ रचना की । 1 १०८ इसी प्रकार इस गांव के बाहर पूर्व तथा उत्तर भाग में ये दो छोटे पर्वत हैं, जो अभी तो वीरान हालत में हैं । पुरानी सीढ़ियां कहीं कही दिखती है, उन पर्वतों पर प्राचीन जिन मंदिरों का अवशेष, गर्भगृह आदि के खंडहर कितनी खंडित जिन मुर्तियां आदि अब भी है ।
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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