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चातुर्मास के बीच में पंचरंगीतप, श्री नवपदजी की सामूहिक ली इत्यादि आराधना का वातावरण उत्तम जमा । चातुर्मास पूरा होने से वि. सं. 1934 का माग सु. 13 पूज्य श्री ने विहार करके आसपास विचरण करके फागुन चौमासे के लिए उदयपुर पधारे तब सेठ श्री किशना जी द्वारा पूज्य श्री के उपदेश से प्रभावित होकर श्री केसरियाजी तीर्थ का छरी पालन करता हुआ संघ निकालने की भावना हुई ।
पूज्य श्री को बात की । पूज्य श्री ने धर्म कार्य के मनोरथ शीघ्र पूर्ण हो तो उत्तम यों समझकर फा. वि. 3 का श्रेष्ठ मुहूर्त निकाल दिया । पत्रिका छपवाकर आसपास के गांवों को भेजी। इस प्रसंग में पूज्य श्री के हृदय में एक मंगल मनोरथ उत्पन्न हुआ । युगादि ऋषभदेव भगवंत का जन्म तथा दोक्षा का दिन चैत्र व 8 ( गु. ज. फा. व 8 ) को पड़ता है । केशरियाजी में इस पवित्र दिन मेले का आयोजन किया जाय तो इस बहाने लोगों में उत्तम जागृति आवे | यह धारणाकर बहुत बड़ा हेण्ड बिल प्रकाशित कर केशरिया जी तीर्थ का महत्व तथा वर्तमान अवससर्पिणी काल के प्रथम तीर्थकर, कलियुग की जागृत - ज्योति, श्री केशरियाजी तीर्थ जिसकी प्राचीन प्रतिमाजी है । उनकी यात्रा के निमित्त वार्षिक दिवस के रूप में प्रभु का जन्म तथा दीक्षा कल्याण से
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