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योदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन
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परम्परा में मूर्धन्य स्थान निर्धारित किया है । अनन्तर अनेक प्रमाणों द्वारा स्वामी कुन्दकुन्द का समय निर्धारित कर उनका परिचय दिया है ।
स्वामी कुन्दकुन्द ऐसे आचार्य हैं जिनका दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों ही आम्नाय समान रूप से आदर करते हैं । इसीलिए महाकवि ने प्रस्तुत कृति में कुन्दकुन्द प्रणीत जैन धर्म के स्वरूप एवं मोक्ष के मार्ग को निरूपित किया है। इसमें कवि ने जैनों में दिगम्बर और श्वेताम्बर मत की उत्पत्ति के कारण एवं उनकी विशेषताओं पर प्रकाश डाला है। "वस्त्रधारी की मुक्ति नहीं", "स्त्रीमुक्ति", "केवलज्ञान" आदि विषयों का भी विशद विवेचन हुआ है ।
पवित्र मानवजीवन
प्रस्तुत कृति में १९३ पद्य हैं। इसमें कवि ने मानव जीवन को सफल बनाने वाले कर्त्तव्यों का निरूपण किया है। जैसे समाजसुधार, परोपकार, कृषि एवं पशुपालन, भोजन के नियम, नारी का उत्तरदायित्व, सन्तान के प्रति अभिभावकों के कर्त्तव्य आदि । आधुनिक दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति, उपवास, गृहस्थ और त्यागी में अन्तर आदि विषयों का रोचक प्रतिपादन हुआ है ।
सरल जैन विवाहविधि
इसमें जैनधर्म के अनुसार विवाह की विधि का वर्णन किया गया है ।
तत्त्वार्थ दीपिका
यह जैन सिद्धान्त के प्रसिद्ध ग्रन्थ तत्वार्थ सूत्र की सरल भाषा में लिखी गई टीका है। अनुवाद कृतियाँ
(१) विवेकोदय
(२) नियमसार का
पद्यानुवाद
(३) देवागम स्तोत्र का
पद्यानुवाद
(४) अष्टपाहुड का
पद्यानुवाद
यह आचार्य कुन्दकुन्द के द्वारा रचित समयसार की गाथाओं का गीतिका छन्द में हिन्दी रूपान्तर है ।
यह दोनों पद्यानुवाद साप्ताहिक जैनगजट में वर्ष १९५६-५७ में क्रमशः छपे हैं।
यह पद्यानुवाद 'श्रेयोमार्ग' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।