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________________ [ (7) डॉ. नरेन्द्र सिंह राजपूत ने "संस्कृत वाङ्मय के विकास में बीसवीं सदी के जैन मनीषियों के योगदन" पर पी. एच. डी. की है, जिसमें ज्ञानसागर के संस्कृत साहित्य को विवेचित किया गया है । प्रकाशन आचार्य ज्ञानसागर वागर्थ विमर्श केन्द्र, सरस्वती भवन, सेठजी की नसियाँ ब्यावर (राज.) से किया गया ___ इस प्रकार और भी अनेक शोध प्रबन्ध किये जा सकते हैं, ऐसा विद्वानों | का मत है । महाकवि के एक-एक संस्कृत काव्य को लेकर विगत एक साल | से अखिल भारतवर्षीय विद्वत् संगोष्ठी की जा रही हैं, जिनमें सैकड़ों विद्वान एक ही काव्य पर भिन्न भिन्न विषयों पर वाचर कर ज्ञानसागर के साहित्य सागर से रत्नों को निकाल रहे हैं । . | प्रथम गोष्ठी अतिशय क्षेत्र सांगानेर, जयपुर में 9 जून से 11 जून, 1994 | में हुई। .. | द्वितीय संगोष्ठी अजमेर नगर में वीरोदय महाकाव्य पर 13 से 15 अक्टूबर, 1994 में हुई। तृतीय संगोष्ठी ब्यावर (राजस्थान) में 22 से 24 जनवरी, 1995 में हुई ।। . | चतुर्थ संगोष्ठी, 1995 चातुर्मास में किशनगढ़ में हुई, जिससे लगभग 80 | जैन-अजैन अन्तराष्ट्रीय विद्वानों ने भाग लिया । यह गोष्ठी जयोदय महाकाव्य पर थी, सभी विद्वानों ने एकमत से इस महाकाव्य को इस युग का सर्वोच्च महाकाव्य मानकर साहित्य जगत के उच्च सिंहासन पर विराजमान किया है । सभी विद्वानों ने इसे बृहत्-त्रयी (नैषधीय चरित्र, शिशुपाल वध एवं किरातार्जुनीयम्) के समकक्ष मानकर बृहत्रयी के नाम को बृहच्चतुष्टयी के रूप में सज्ञित करके साहित्य जगत को गौरान्वित किया है । मैने अपने कानों से विद्वानों के लेख इन संगोष्ठियों में सुने हैं । बहुत ही प्रशंसनीय एवं श्रमसाध्य लेख विद्वानों ने लिखे हैं । गोष्ठियों के दौरान विद्वानों का मत था कि ज्ञान सागर का समग्र साहित्य एक स्थान से प्रकाशित होना चाहिए । सो वह 1994 के चातुर्मास में अजमेर के दिगम्बर जैन समाज के द्वारा प्रकाशित किये जा चुके है । दूसरा निर्णय लिया गया था कि ज्ञानसागर के साहित्य पर पाठ्यक्रम तैयार किया जाये, यह कार्य विद्वानों को सौंप दिया गया है । तीसरा निर्णय लिया गया था कि आचार्य ज्ञानसागर संस्कृत शब्द कोष तैयार किया जाये, सो यह कार्य भी विद्वानों को सौंप दिया गया है । चौथा निर्णय लिया
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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