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________________ २०२ . जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन है। अकम्पन की बातों का आदर करते हुए वह पुनः जयकुमार से मित्रता कर लेता है और उसे निभाता है।' इस प्रकार अर्ककीर्ति में एक विवेकहीन, ईष्यालु, अहंकारी और छलकपट से परिपूर्ण किन्तु ठोकर खाकर अन्त में सन्मार्ग पर आ जाने वाले खलनायक का चरित्र सजीव हो उठा है। अकमन . अकम्पन भरत चक्रवर्ती के अधीनस्थ काशी के राजा हैं । इनकी रानी का नाम सुप्रभा है । इनके हेमांगद आदि एक हजार वीर पुत्र एवं सुलोचना तथा अक्षमाला दो पुत्रियाँ हैं । जयोदय में अकम्पन का चित्रण वात्सल्य से परिपूर्ण पिता के रूप में किया गया है । वे अपनी पुत्री सुलोचना के युवा होने पर उसके विवाह के विषय में चिन्तित होते हैं । इस सम्बन्ध में अपने मन्त्रियों से विचार विमर्श कर स्वयंवर का आयोजन करते हैं । वे दूतों के द्वारा विभिन्न नगरों एवं राज्यों में स्वयंवर विधान का आमन्त्रण भेजते हैं । स्वयंवर हेतु आये राजकुमारों का वे अपने द्वार पर जाकर स्वागत करते हैं, आदरपूर्वक अपने साथ लाते हैं और उचित स्थान में ठहराते हैं। राजा अकम्पन न्यायप्रिय एवं शान्तिप्रिय राजा हैं । वे अपने शासन में सर्वप्रथम सामनीति का ही प्रयोग करते हैं । यही कारण है कि जब स्वयंवर में सुलोचना द्वारा वरण न किये जाने पर अर्ककीर्ति युद्ध के लिए तत्पर हो जाता है, तब अकम्पन यह जानते हुए कि अर्ककीर्ति उनकी बात नहीं मानेगा, उसके समीप एक शान्तिदूत भेजते हैं । जब अकम्पन की सामनीति का प्रयोग सफल नहीं होता, तब वे युद्ध के लिए तत्पर होते हैं । युद्ध में विजयी होने पर वे सर्वप्रथम जिनेन्द्रदेव की पूजा करते हैं । अनन्तर जिनेन्द्रदेव के चरणों में बैठी अपनी पुत्री सुलोचना को जयकुमार की विजय का शुभ समाचार देते हैं और स्नेह पूर्वक उसे घर ले जाते हैं। राजा अकम्पन समदर्शी हैं । वे शत्रु और मित्र को समान भाव से देखते है । वे अपने जामाता की विजय पर प्रसन्न नहीं होते अपितु युद्ध में हुए नरसंहार से दुःखी और अर्ककीर्ति की पराजय से चिन्तित हो जाते हैं । वे पराजित अर्ककीर्ति को शान्त करने के लिए उसके समक्ष अपनी द्वितीय पुत्री अक्षमाला के विवाह का प्रस्ताव रखते हैं । जब १. जयोदय, ९/२५-५०
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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