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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन की, तथा “उरोरोह" में एक व्यंजन "र" की एक बार निरन्तर आवृत्ति हुई है ।
अनारङ्गप्रतिमं तदई भीपिरमस्कृतमानताम्पाः ।
कुर्वन्ति यूनां सहसा पर्वतः स्वान्तानि शान्तापरचिन्तनानि ।' यहाँ संयुक्त व्यंजन युगल "न" तथा "न्त" की अनेक बार सान्तर आवृत्ति हुई
“अलिकुलकोकिलललिते" यहाँ एक व्यंजन “ल्" की अनेक बार निरन्तर आवृत्ति
(३) माधुर्य बंजक वर्णविन्यासवकता
निम्नलिखित वर्ण माधुर्य के व्यंजक हैं । उनके आवृत्ति रहित या आवृत्ति सहित प्रयोग से माधुर्य की व्यंजना होती है :
(१) ट, ठ, ड, ढ को छोड़ कर "क" से लेकर "म" तक के वर्ण जब वे पूर्व भाग में अपने वर्ग के अन्तिम वर्ण से संयुक्त होते हैं (वर्गान्तयोगी ट, ठ, ड, ढ वर्जित स्पर्श वर्ण) ।
(२) हस्वस्वरयुक्त रकार और णकार । (३) द्विरुक्त त, ल, न आदि ।
(४) र-ह आदि से संयुक्त य-ल आदि ।' उपर्युक्त वर्णों की आवृत्ति स्वल्पान्तर से (अल्पव्यवधान पूर्वक) तथा प्रस्तुत विषय की शोभा बढ़ाने वाली (रसोत्कर्ष) होनी चाहिए।"
अनारप्रतिमं तदङ्गालीमिरीकृतमानताम्याः ।
कुर्वन्ति यूनां सहसा यवताः स्वान्तानि शान्तापरचिन्तनानि ।' . यहाँ अनङ्ग, तदङ्ग, भङ्गी आदि में गकार का आवर्तन तथा स्वान्त, शान्त, चिन्तन
१. काव्यप्रकाश 4/७४ २. "गुरुजनपरतन्त्रतया" इत्यादि पद्य का अंश । काव्यप्रकाश, ९/ ३. काव्यप्रकाश ८/७४, ४. वही, 4/७४ ५,६.वर्गान्तयोगिनः स्पर्शा द्विरुक्तास्तलनादयः।
शिधाश्च रादिसंयुक्ताः प्रस्तुतीचित्यशोमिनः ।। वक्रोक्तिजीवित, २/२ ७. पुनः पुनर्वध्यमाना स्वल्पान्तरा परिमितव्यवहिता इति सर्वेषामभिसम्बन्धः प्रस्तुतौचित्यशोभिनः ।
- वही, वृत्ति ८. काव्यप्रकाश, ८/७४