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________________ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन १४३ सम्प्रेषणीयता एवं तथ्यात्मकता के कारण साहित्य और विद्वद्वचनों में स्थान पा लेती हैं । काव्यशास्त्र में सूक्तियाँ और लोकोक्तियाँ अर्थान्तरन्यास, दृष्टान्त एवं प्रतिवस्तूपमा अलंकारों में गर्भित हैं। सक्तियों का अभिव्यंजनात्मक महत्त्व सूक्तियों का प्रयोग लोकोक्तियों की तरह ही निम्नलिखित प्रयोजनों से होता है:-- कथन की पुष्टि, आचरण के हेतु का प्रतिपादन, मानवव्यवहार, मानवदशा, गानवोपलब्धि तथा सांसारिक एवं प्राकृतिक घटनाओं से प्राप्त तथ्यों का निरूपण, उपदेश, परामर्श एवं आचरण के औचित्य की सिद्धि तथा नीति विशेष का कथन । सूक्तियों के द्वारा कथन में दार्शनिक, आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक एवं शास्त्रीय प्रभाव आ जाता है जिससे कथन उदात्त एवं गरिमापूर्ण बन जाता है । सूक्तियाँ जीवन सत्यों से परिपूर्ण होती हैं इसलिए मन को प्रभावित करती हैं । उनसे दुःखी मन को सान्त्वना, निराश मन को उत्साह तथा अधीर मन को धैर्य मिलता है । अँधेरे में भटकता हुआ मनुष्य प्रकाश पा लेता है और दिशा भ्रष्टों को दिशा मिल जाती है । इस प्रकार सूक्तियाँ अभिव्यंजना की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । जयोदय में सूक्तिप्रयोग महाकवि ज्ञानसागर ने जयोदय में शताधिक सूक्तियों का प्रयोग किया है । इनमें सज्जन-दुर्जन आदि की प्रकृति का, धन, धर्म, विद्या, बुद्धि, पौरुष आदि के महत्त्व का, जगत् के स्वभाव सुख-दुःख के स्वरूप तथा सार-असार भूत तत्त्वों का सूत्ररूप में वर्णन किया गया है और इनका उपयोग कवि ने कथन विशेष की पुष्टि, आचरण विशेष के हेतु निर्देश, उपदेशों एवं व्यवहार विशेष के औचित्य प्रतिपादन तथा मानव व्यवहार एवं सांसारिक तथा प्राकृतिक घटनाओं से प्राप्त तथ्यों के निरूपण के लिए किया है । निम्न उदाहरणों में सूक्तियों के द्वारा पात्रों के आचरण का हेतु निर्दिष्ट कर उनके चारित्रिक वैशिष्ट्य का प्रकाशन किया गया है - ___ यद्यपि राजा जयकुमार सुलोचना के प्रति अनुरुक्त था फिर भी उसने (सुलोचना के पिता) महाराजा अकम्पन से सुलोचना की याचना नहीं की । “जीवन भले ही चला जाय, स्वाभिमानी कभी किसी से याचना नहीं करता" (किमन्यकैर्जीवितमेव यातु न याचितं मानि उपैति जात) - न चातुरोऽप्येष नरस्तदर्थमकम्पनं याचितवान् समर्थः । किमन्यकैर्जीवितमेव यातु न याचितं मानि उपैति जातुं ॥१/७२
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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