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से करते हुए गिरगिट से समान लाल-पीले रंग बदल रहा था ।
रूपयौवनगुणादिकमन्यैः स्वजनोऽथ तुल्यन्निह धन्यैः । रक्तिमेतरमुखं सरटोक्तं नैकरूपमयते स्म तवोक्तम् ||५ / १३
वहां प्रत्येक राजकुमार अपने रूप यौवन और गुणादि की तुलना अन्य राजकुमारों
जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन
प्रस्तुत पद्य में सुवर्णमूर्ति रूपक द्वारा सुलोचना की देहच्छवि प्रत्यक्ष सी कर दी गई
सुवर्णमूर्तिः प्रागेव यौवनेनाधुनाऽञ्चिता ।
अद्भुतां लभते शोभां सिन्दूरेणेव संस्कृता ॥ ३ / ५९
सुलोचना प्रारम्भ से ही स्वर्ण (अच्छी शोभा वाली) मूर्ति है । वह इस समय युवावस्था में सिन्दूर से सुसंस्कृत होकर अपूर्व शोभा धारण कर रही है ।
शोक से पीला पड़ने की उत्प्रेक्षा द्वारा निर्मित यह चित्र चन्द्रमा की प्रातः कालीन निष्प्रभता का सफल व्यंजक है
यन्मीलितं सपदि कैरविणीभिराभिः,
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क्षीणा क्षपास्तमितमप्युत तारकाभिः ।
संचिन्तयन् दयितदारतयेन्दु देवः,
प्राप्नोति पाण्डुवपुरित्यथवा शुचेव ॥१८/२१
चन्द्रमा की तीन स्त्रियाँ थीं- कुमुदिनी, रात्रि और तारा । इनमें से इस समय कुमुदिनी मूर्च्छित हो गई है, रात्रि नष्ट हो गई है तथा तारा अस्तमित हो गई । अतएव मानों स्त्री- प्रेमी चन्द्रमा अपनी स्त्रियों के विषय में चिन्तित होता हुआ शोक से ही पाण्डुता को प्राप्त हो रहा है ।
निम्न श्लोक में दुर्वर्ण और सुवर्ण विशेषणों से मुख का जो बिम्ब निर्मित किया गया है उससे काव्यरस के प्रति दुर्जन और सज्जन की प्रतिक्रिया सहजतया हृदयंगम हो जाती है :
अहो काव्यरसः श्रीमान्यदस्य पृषता व्रजेत् ।
दुर्वर्णतां दुर्जनस्य मुखं साधोः सुवर्णताम् || २८ /७४
आश्चर्य है कि काव्यरस के अंश मात्र से ही सज्जन का मुख प्रसन्न होता है। ( अर्थात् आनन्ददायक होता है) और दुर्जन का मुख ईर्ष्या भाव के कारण पीला हो जाता
है ।