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________________ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन प्रस्तुत चक्रबन्ध के छह आरों के प्रत्येक प्रथम अक्षर तथा छठे अक्षर को पढ़ने पर "जयमहीपतेः माधुसदुपास्ति" वाक्य बनता । इससे यह संकेतित होता है कि राजा जयकुमार के द्वारा साधु की उपासना की गई है, जो पूरे मर्ग का वर्ण्य विषय है । ' ११० उपर्युक्त अनुशीलन दर्शाता है कि जयोदय के कवि ने वस्तु की स्वाभाविकरमणीयता, उत्कृष्टता एवं विशिष्टता, अमूर्त पदार्थों के अतीन्द्रिय स्वरूप, कार्य के औचित्यानौचित्य के स्तर, मनुष्य के चारित्रिक वैशिष्ट्य, मनोभावों की उग्रता, मनोदशाओं की मार्मिकता तथा परिस्थितियों एवं घटनाओं की विकटता का हृदयस्पर्शी अनुभव कराने के लिए अलंकारात्मक अभिव्यंजना शैली का आश्रय लिया है। इससे अभिव्यक्ति को रमणीय एवं प्रभावोत्पादक बनाने में कवि ने पर्याप्त सफलता पायी है । कहीं-कहीं पूर्व कवियों से प्रभावित होकर मात्र वैचित्र्य की उत्पत्ति के लिए, अभिव्यंजनागत अभिव्यंजनात्मक महत्व से विहीन अलंकारों का विन्यास किया है । किन्तु इनकी संख्या अल्प है। अधिकाँश अलंकार अभिव्यंजनात्मक शक्ति से सम्पन्न हैं और उन्होंने भाषा को काव्यात्मक रूप देने में अद्भुत योगदान किया है । १. महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन, पृ० ३३१ 100
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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