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________________ पंचम अध्याय अलंकारविन्यास अलंकृतता भी काव्यभाषा का एक महत्त्वपूर्ण गुण । उन उक्ति वैचित्र्यों या विचित्र कथन प्रकारों को अलंकार कहते हैं, जो उपमात्मक, रूपकात्मक, अपह्नुत्यात्मक, संदेहात्मक आदि होते हैं। ये भाव विशेष की अभिव्यक्ति के अद्वितीय माध्यम होते हैं, साथ ही इनमें वक्रोक्तिजन्य रोचकता एवं व्यंजकताजन्य चारुत्व भी रहता है। विशिष्ट अलंकार विशिष्ट सन्दर्भ में ही भावाभिव्यक्ति के उपयुक्त होता है । कहीं उपमा ही सन्दर्भ के अत्यन्त उपयुक्त होती है, कहीं रूपक ही तथा कहीं केवल रूपकातिशयोक्ति' जिस सन्दर्भ में उपमा उपयुक्त हैं, उसमें रूपक आदि अन्य अभिधान प्रकार उपयुक्त नहीं होते । एक सीधी सपाट सादृश्यविधानात्मक उक्ति कभी-कभी अधिक पैनी हो सकती है। जैसे - सुरभि सी सुकवि की सुमित खुलन लागी, चिरई सी चिन्ता जागी जनक के हियरे । धनुष पै ठाढ़ो राम रवि सों लसत आज, भोर कैसो नखत नरिन्द भये पियेरे || - (रघुनाथ बन्दीजन) इसमें एक सांग उपमा है । धनुष के ऊपर राम ऐसे लगते हैं, जैसे प्रभातकालीन सूर्य और दूर धूमिल पड़ते हुए राजा बुझते हुए नक्षत्र की तरह लगते हैं । इस प्रभात की सूचना दो चीजों से मिलती है जनक के हृदय में एक चिन्ता जगती है, उसी प्रकार जैसे भोर में एक चिड़िया बोलती है । यह चिन्ता आने वाले दिन के कठोर यथार्थ की चिन्ता हो सकती है, राम के संघर्ष की चिन्ता हो सकती है, सीता के भागधेय की चिन्ता हो सकती है और तत्काल उपस्थित होने वाले राम परशुराम द्वन्द्व की भी चिन्ता हो सकती है । लेकिन यह चिन्ता कर्म को प्रेरित करने वाली चिन्ता है, जिस तरह कि चिड़िया का चहचहाना आदमी के लिये कर्म का आह्वान होता है । दूसरी सूचना मिलती है, प्रभातकालीन समीरण के द्वारा सुरभि के फैलने से । राम के धनुष भंग के अनन्तर सुकवि की सद्बुद्धि प्रस्फुटित होने लगती है, क्योंकि राम के चरित के गान से ऐसे सुकवियों का कल्याण तो होगा ही, उनकी कृति के द्वारा और भी उससे सुवासित होंगे । - १. रीतिविज्ञान : डॉ. विद्य: निवास मिश्र, पृष्ठ ९ २. वही
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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