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चतुर्थ अध्याय
मुहावरे एवं प्रतीक विधान मुहावरे भाषा को काव्यात्मक बनाने वाले अद्भुत उपादान हैं , क्योंकि ये वक्रोक्ति के उत्कृष्ट रूप हैं; अतः इनमें लाक्षणिकता एवं व्यंजकता कूट-कूट कर भरी होती है । मुहावरे का लक्षण
जो लाक्षणिक एवं व्यंजक शब्द प्रयोग बहुप्रचलित (रुढ़) हो जाता है, वह मुहावरा कहलाता है । मुहावरे का मुख्य लक्षण है मुख्यार्थ के अतिरिक्त अन्य अर्थ में प्रसिद्ध हो जाना जैसे "गधा," "उल्लू," चमचा," "दुम" आदि ऐसे शब्द हैं जो अपने मुख्या में तो प्रसिद्ध हैं ही, मुख्यार्थ के अतिरिक्त मूर्ख, चाटुकार, पिछलग्गू आदि अर्थों में भी प्रसिद्ध हो गये हैं । इसलिये ये मुहावरे के रूप में प्रयुक्त होते हैं । मुहावरे रूढ़ा लक्षणा से भिन्न हैं। सड़ा लक्षणा में शब्द अपना मुख्यार्थ खो देता है और अन्य अर्थ ही उसका मुख्यार्थ बन जाता है । जैसे "गो"शब्द का मुख्यार्थ था "गमन करने वाला" किन्तु उसने यह अर्थ खो दिया है और "गाय" ही उसका मुख्यार्थ हो गया है । इसी प्रकार "कुशल" शब्द ने भी अपना "कुशान् लाति आदत्ते" यह मुख्यार्थ छोड़ दिया है और दक्ष अर्थ का वाचक बन गया है । मुहावरे के रूप में प्रयुक्त शब्द या शब्द समूह अपना मुख्यार्थ नहीं खोते । सामान्यतया वे अपने मुख्यार्थ के ही वाचक होते हैं, मात्र सन्दर्भ विशेष में अन्य अर्थ के बोधक बन जाते हैं । जैसे जब बैल को ही बैल कहा जायेगा तब वह अपने मुख्यार्थ का ही बोधक होगा, किन्तु जब किसी मनुष्य को बैल कहा जायेगा तब वह मुहावरा बन जायेगा; क्योंकि मनुष्य के सन्दर्भ में वह बैल अर्थ का बोधक न रहकर "मूर्ख" अर्थ का बोधक हो जायेगा।
कोई भी संज्ञा, विशेषण या क्रिया अथवा इनका समुदाय मुख्यार्थ के अतिरिक्त अन्य अर्थ में भी प्रसिद्ध हो जाने पर मुहावरा बन जाता है । यथा -
बैल - यह संज्ञा अपने मुख्यार्थ के अतिरिक्त मूर्ख अर्थ में भी प्रसिद्ध हो गई है, अतः जिस सन्दर्भ में यह "मूर्ख" अर्थ का बोध करायेगी वहाँ मुहावरा होगा ।
शीतलवाणी - शीतल का मुख्यार्थ है ठंडा, किन्तु वाणी के सन्दर्भ में वह "शान्ति पहुँचाने वाली" अर्थ में प्रसिद्ध हो गया, अतः इस सन्दर्भ में वह मुहावरा है ।
पुष्पवृष्टि - वृष्टि शब्द जल बरसने का वाचक है, किन्तु पुष्पों के सन्दर्भ में मस्तक पर प्रचुर पुष्प गिरने के अर्थ में प्रसिद्ध हो गया है, अतः वहाँ यह मुहावरा बन गया है।