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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन अवदत् सवदर्शने पुरः सदनानाञ्च मुखानि सर्वतः ।
अक्लम्बितमौक्तिकमजां रुचिभिहाँस्यमयानिसा प्रजा ॥१०/१३
तलवार के साथ प्रयुक्त “पान करना" एवं “आलिंगन करना" धर्म उसकी अत्यन्त विनाशकारिता का द्योतन करते हैं -
"राजा जयकुमार की तलवार शत्रुओं के गजसमूह का रक्तपानकर शत्रुओं के वक्षस्थल का बेरोकटोक आलिंगन कर रही है।" -
निपीय मातपटामगोषं स्पृशन्त्यरीणां तदुरोऽप्यमोषम् ।
कामवनामात्ममतं निवेष यस्पासिपुत्री समुदाप्यतेऽय ॥१/२७ चेतन के साथ बड़ के धर्म का प्रयोग
विकसित होना पुष्प का धर्म है । यह मानव के साथ प्रयुक्त होने पर उसके उत्साहातिशय को अनुभूतिगम्य बना देता है -
"हस्तिनापुर के लिए प्रस्थान की भेरी सुनकर पदयात्री विकसित हो उठे और अपनी कमर कसने लगे।" .
विकसन्ति कशन्ति मध्यकं स्म तदानीं विनिशम्य मेरिकाम् ।
परिकाः परि कामनामया न हि कार्येऽस्तु मनाम्निसम्बनम् ॥१३/६ अमूर्त के साथ मूर्त के धर्म का प्रयोग
"बाहर न निकलना और स्वच्छन्द विहार करना" मूर्त पदार्थ के धर्म हैं जो अमूर्त कीर्ति के साथ प्रयुक्त होकर जयकुमार के शत्रुओं के सर्वथा यशोविहीन तथा जयकुमार के अत्यन्त यशस्वी होने की व्यंजना में समर्थ हो गये हैं -
___"जो नीतिशास्त्र के ज्ञाता हैं वे (जयकुमार के) शत्रुओं की देह से बाहर न निकलने वाली कीर्ति को असती एवं राजा जयकुमार की स्वच्छन्तापूर्वक विहार करने वाली कीर्ति को सती मानते हैं।"
पडदां देहत एव बालमनिस्सरन्तीमसती निगाल।
कीर्ति सतः स्वैरविहारिणी ते सर्ती प्रतीयत्वविधाः प्रणीतेः॥ १/२०
मन अमूर्त है । गठबन्धन मूर्त का धर्म है । मन के साथ "गठबन्धन" शब्द का प्रयोग कर कवि ने प्रेम के स्थायी हो जाने का भाव रमणीयतापूर्वक अभिव्यक्त किया है -
"जयकुमार और सुलोचना का विवाह हुआ। दोनों के वस्त्र का गठबन्धन किया गया । इतना ही नहीं उनके मन का भी गठबन्धन हो गया है।" -