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________________ OR ज्ञ नोदय तीर्थ क्षेत्र - एक दृष्टि ___ भारतीय संस्कृति आदर्श पुरुषों के आदर्शों से प्रसूत एवं संवर्द्धित/संरक्षित है । प्रत्येक भारतीय अपने आदर्श पुरुषों को जीवन के निकटतम सजोने का प्रयास करता है । भारत की आदर्श शिरोमणी दिगम्बर जैन समाज आध्यात्मिक संस्कृति का कीर्तिमान अनादिनिधन सनातन काल से स्थापित करती रही है। इस सनातन प्रभायमान दि. जैन संस्कृति में/प्रत्येक युग में चौबीस-चौबीस तीर्थंकर होते रहे हैं, होते रहेंगे । जिनकी सर्वज्ञता से प्रदत्त जीवन को जयवंत बनाने वाले सूत्रों ने इनके व्यक्तित्व को आदर्शता एवं पूज्यता प्रदान की है। वीतरागी, निष्पही, अठारह दोषों से रहित, अनन्त चतुष्ट्य के धनी, इन अरहन्तों ने अपनी दिव्य वाणी से राष्ट्र समाज एवं भव्य जीवों के लिये सर्वोच्च आदर्श प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त किया है । जब इन महान् अरहन्तों का परम् निर्वाण हो जाता है तब इनके अभाव को सद्भाव में अनुभूत करने के लिए दि. जैन संस्कृति में स्थापना निक्षेप से वास्तुकला के रूप में/ मूर्ति के रूप में स्थापित कर जिन बिम्ब संज्ञा से संज्ञित किया जाता है। इन जिन बिम्बों से अनन्त आदर्श प्रतिबिम्बित होकर भव्य प्राणीयों के निधत्तनिकाचित दुष्ट कर्मों को नष्ट करते हैं । ऐसे महान जिन बिम्बों को जिन-भक्त नगर या नगर के निकट उपवन में विराजमान कर उस पवित्र क्षेत्र को आत्मशान्ति का केन्द्र बना लेता है । नगर जिनालयों की अपेक्षा उपवनों में स्थापित तीर्थक्षेत्रों का वातावरण अधिक विशुद्ध होता है । अतः लोग सैकड़ों मीलों से हजारों रूपया खर्च करके तीर्थक्षेत्रों पर तीर्थयात्रा करने जाते हैं। कहा जाता है कि जिस भूमि पर तीर्थ क्षेत्र होते हैं तथा तीर्थ यात्री आकर तीर्थ वन्दना करते हों वह भूमि देवताओं द्वारा भी बन्दनीय हो जाती है । इसलिये प्रत्येक जिला निवासी जैन बन्धु अपने जिले में । किसी सुन्दर उपवन में विशाल जिन-तीर्थ की स्थापना करके सम्पूर्ण राष्ट्र के भव्य जीवों के लिये यात्रा करने का मार्ग प्रशस्त करके अपने जिले की भूमि को पावन बना लेता है । दुर्भाग्य ही कहना चाहिये कि अजमेर जिला दिगम्बर जैन श्रावकों के लिये कर्म स्थली रहा है लेकिन तीर्थक्षेत्र के रूप में धर्म स्थली बनाने का सौभाग्य प्राप्त नहीं कर सका । अर्थात् अजमेर मण्डलान्र्तगत अभी तक एक भी तीर्थ क्षेत्र नहीं है । जिस पर भारतवर्ष के साधर्मी बन्धु तीर्थ यात्री के रूप में आकर जिले की भूमि को पवित्र कर सकें ।
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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