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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन हैं । भरत भी विनत जयकुमार को उठाकर आलिंगन करते हैं । जयकुमार क्षमा-याचना पूर्वक काशी नगरी का सारा वृत्तान्त बतलाता है । भरत वृत्तान्त सुनकर अपने पुत्र अर्ककीर्ति को ही दोषी ठहराते हैं । वे महाराजा अकम्पन, उनकी पुत्री सुलोचना एवं जयकुमार के कार्यों की सराहना करते हैं। वे जयकुमार का यथोचित सत्कार करते हैं। उसे तथा सुलोचना को वस्त्राभूषण देते हैं । सम्राट् द्वारा सत्कृत जयकुमार उनसे आज्ञा लेकर हाथी पर बैठकर गन्तव्य स्थल की ओर प्रस्थान करता है । मार्ग में आयी गंगा नदी के मध्य में जब वह पहुँचता है तो उसके हाथी के आगे बड़ी-बड़ी लहरें उठने लगती हैं । अचानक आये संकट के कारण वह नदी पार करने में असमर्थ हो जाता है । संकट से वह व्याकुल हो जाता है।
चकोरीवत् प्रतीक्षारत सुलोचना विनाशकारी जलप्रवाह से आक्रान्त अपने पति को देखती है | पति के संकट का प्रतिकार करने के लिये सुलोचना पञ्च-नमस्कार मन्त्र का स्तवन करते हुए जल में प्रविष्ट होती है । उसके सतीत्व के प्रभाव से गंगा का जल अत्यल्प रह जाता है । गंगा देवी सती सुलोचना के शील से प्रभावित होती है । वह नदी के तट पर सुलोचना की दिव्य वस्त्राभूषणों से पूजा करती है । यह देखकर जयकुमार आश्चर्य चकित होता है । गंगादेवी उसकी जिज्ञासा शान्त करते हुए कहती है - मैं पूर्व जन्म में सुलोचना की दासी थी । सर्पिणी के काटने पर सुलोचना ने मुझे पञ्च-नमस्कार मन्त्र सुनाया था, जिसके प्रभाव से मैंने यहाँ देवी का जन्म प्राप्त किया है । जयकुमार से द्वेष रखने वाली सर्पिणी ने यहाँ चण्डिका देवी के रूप में जन्म लिया है । उसी ने पूर्व जन्म के द्वेष के कारण नदी में उपद्रव किया है । अवधिज्ञान से मैंने स्व-उपकारक सुलोचना को संकटग्रस्त जाना, अतः मैं यहाँ आयी हूँ । जयकुमार मधुर वचनों से गंगादेवी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। अनन्तर सुलोचना अपने पति जयकुमार की पूजन करती है । एकविंशतितम सर्ग
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जयकुमार की आज्ञा से सैनिक हस्तिनापुर जाने की तैयारी करते हैं । जयकुमार और सुलोचना रथारूढ़ होकर प्रस्थान करते हैं । मार्ग के मनोहर दृश्यों द्वारा जयकुमार सुलोचना का मनोरंजन करते हुए एक वन में पहुँचते हैं । वन की शीतल हवा से उनकी थकान दूर हो जाती है । वन-सौन्दर्य का अवलोकन कर वे हर्षित होते हैं । वन भूमि को पार कर वे आगे बढ़ते हैं, जहाँ शबरों (म्लेच्छों) के राजा उन्हें गजमुक्ता, पुष्पों एवं फलादि का उपहार देते हैं । अनन्तर वे गोपों की बस्ती में पहुंचते हैं । सुलोचना वहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य एवं जीवन का अवलोकन कर आनन्दित होती है । गोप-गोपियाँ दूध, दही से उनका