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________________ देविन्दत्थय (देवेन्द्र स्तव) दहं वा 'हुस्सं वा जं संठाणं हवेज्र चरिमभवे । तत्ततिभागहीणा सिद्धाणोगाहणा भणिया ॥ 288॥ तिन्निसया' तेत्तीसा धणुत्तिभागो य होइ बोधव्वो । एसा खलु सिद्धाणं उक्कोसोगाहणा भणिया | 289 | चत्तारियरयणीओ रयणितिभागूणिया य बोधव्वा । एसा खलु सिद्धाणं मज्झिमओगाहणा भणिया ॥ 290|l एक्का य होइ रयणी अट्ठेव य अंगुलाई साहीया । एसा खलु सिद्धाणं जहण ओगाहणा भणिया ॥ 291॥ ओगाहणाइ सिद्धा भवत्तिभागेण हुंति परिहीणा । संठाणमणित्थंत्थं जरा-मरणविप्पमुक्काणं ॥ 292॥ सिद्ध तत्थ अणंता भवक् खयविमुक्का । अन्नोन्नसमोगाढा पुट्ठा सव्वे अलोगंते ॥ 293॥ असरीरा जीवघेणा उवडत्ता दंसणे य नाणे य । सागारमणागारं लक्खणमेयं तु सिद्धाणं ॥ 294 ॥ फुसइ अणते सिद्धे सव्वपएसेहिं नियमसो सिद्धो । ते वि असंखेज्जगुणादेस - पएसेहिं जे पुट्ठा ॥ 295॥ केवलनाणुवउत्ता जाणंती सव्वभावगुण-भावे । पासंति सव्वओ खलु केवलदिट्ठी हऽणंताहिं ॥ 296॥ 52
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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