SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .45 तुलना-जीवाभिगमसूत्र। सूरंतरियाचंदाचंदंतरियाय दिणयरा दित्ता। चित्तंतर लेसागासुहलेसामंदलेस्साय॥ अट्ठासीइंगहा, अट्ठावीसंचहोंतिनक्खत्ता। एगससी परिवारों एत्तोताराणवोच्छामि॥ छावट्ठिसहस्साइंनवचेवसायइंपंचसयाई॥ एगससी परिवारोतारागणकोडिकोडीणं॥'. तुलना-प्रज्ञापनाः सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिंद-बंभलोग-लंतग-महासुक्क-सहस्सार- आणयपाणय-आरण-ऽच्चुय-गेवेज्जगा-ऽणुत्तरोववाझ्या देवा। तुलना-सिद्धांन्तसारः सौधर्मेशानयोः पीतलेश्या देवाभवन्त्यमी।' सनत्कुमारमाहेन्द्रा पीतपद्मादिलेश्यकाः। ब्रह्मब्रह्मोत्तरे कल्पे लांतवेच तथापुनः। कापिष्ठे सर्वदेवाः स्युः पद्मलेश्याः समन्ततः॥ शुक्रे चापि महाशुक्रे शतारे सर्वसुन्दरे। सहस्त्रारेचदेवानां पद्मशुक्ला हिसापुनः॥ आनतादच्युतान्तेषु शुक्ललेश्या दिवौकसः। महाशुक्लैकलेश्याः स्युस्ततो यावदनुत्तरम्॥' 1. जीवाभिगमसूत्र - मुनि घासीलालजी, भाग3, पृ.755-763. 2. प्रज्ञापना-मुनिमधुकर, पृ. 172. 3. सिद्धान्तसार- हीरालालजैन, पृ. 198
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy