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________________ 359 गुणाढ्य पर्वत पर पंक्तिबद्ध होकर चढ़ता है वह दोनों ही पक्ष में परितसंसारी अर्थात् शीघ्र मोक्ष में जाने वाला होता है (70-72)। ग्रंथकार पुण्डरीकगिरि तीर्थ की उत्पत्ति और उसके फल की महिमा यह कहकर पूर्ण करता है कि नवकारसी, पोरसी, पूर्वार्द्ध, एकासन और आयंबिल में जो पुण्डरीक तीर्थ को स्मरण करता है वह फलाकांक्षी अष्टभक्त को करता है तथा छः, आठ, दस, बारह दिन, अर्धमास तथा मासखमण के द्वारा तीन करण से शुद्ध हो शत्रुजय पर्वत को स्मरण करता हुआ मोक्ष प्राप्त करता है (73-74)। प्रस्तुत ग्रंथ में नारदऋषि आदि की दीक्षा, केवलज्ञान की प्राप्ति तथा सिद्धीगमन आदि की चर्चा करते हुए कहा गया है कि लोक में निर्मित विशुद्ध लेश्या के द्वारा नारदऋषि को त्रिभुवन के स्तर रूप दिव्य केवलज्ञान की उत्पत्ति हुई। आगे कहा है कि सभी एक करोड़ व्यक्तियों ने शत्रुजय पर्वत के अग्रभाग पर कर्मों का क्षय कर केवलज्ञान उत्पन्न होने पर सिद्धी प्राप्त की (75-83)। पुण्डरीक पर्वत की महिमा का निरूपण करते हुए कहा है कि दुर्गम जंगल के मार्ग, भीषण वन तथा शमशान के मध्य में भी पुण्डरिक पर्वत को स्मरण करता हुआ मनुष्य विघ्न रहित हो जाता है। आगे कहा गया है कि नदी तथा समुद्र के मध्य में नाव पर आरुढ़ व्यक्ति नाव को टुटी हुई जानकार शत्रुजय पर्वत को स्मरण कर उस टुटी हुई नाव को भी कुशलता पूर्वक खेता हुआ पार उतर जाता है। उत्पत्ति और विनाश तथा मरण और व्याधि से ग्रस्त मनुष्य भी पुंडरिक पर्वत को स्मरण करता हुआ मृत्यु से मुक्त होजाता है (85-92)। ___ग्रंथकार कहता है कि जो मनुष्य एकाग्रचित्त होकर सदाशत्रुजय पर्वत का स्मरण करता है, धन सम्पत्ति से रहित वह मनुष्य मुहूर्तभर में समृद्धि प्राप्त कर लेता है। आगे कहा है कि पुण्डरी पर्वत को स्मरण करते हुए कुंवारी लड़की अच्छे वर को प्राप्त करती है। पुत्राकांक्षी माता पुत्र प्राप्त करती है तथा दुःखी व्यक्ति सुखी हो जाता है। ऐसी अनेक उपमाओं के द्वारा पुण्डरीक पर्वत की महिमा बतलाते हुए ग्रंथकार कहता है कि शत्रुजय पर्वत पर दस पुष्पमाला देकर व्यक्ति एक उपवास का फल, बीस पुष्पमाला देकर दो उपवास का फल, तीसपुष्पमाला देकर तीन उपवास का फल, चालीसपुष्पमालादेकर चार उपवास का फल, पचास पुष्पमाला देकर पाँच उपवास का फल तथा वहाँ दान देकर पंद्रह उपवास का फल प्राप्त करता है (93-97)।
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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