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________________ 334 इस तुलनात्मक अध्ययन में हम देखते हैं कि ग्रंथ की कुल 122 गाथाओं में से 48 गाथाएँ हमें विविध प्रकीर्णकों एवं भगवती आराधना आदि ग्रंथों में मिलती है। जिन प्रकीर्णकों की गाथाएँ हमें इस ग्रंथ में उपलब्ध हो रही हैं, उनमें चन्द्रवेध्यक, भक्तपरिज्ञा, महाप्रत्याख्यान और मरणविभक्ति मुख्य हैं। उनमें से भी सर्वाधिक 30 गाथाएँ मरणविभक्ति से मिलती हैं। जहाँ तक दिगम्बर परंपरा के ग्रंथों का प्रश्न है, इसकी कुछ गाथाएँ मूलाचार, प्रवचनसार, भगवती आराधना आदि में मिलती हैं। इनमें से भी सर्वाधिक 15 गाथाएँ भगवती आराधना के समरूप हैं। जैसा कि हम पूर्व में ही यह प्रतिपादित कर चुके हैं कि जिन ग्रंथों में समाधिमरण की गाथाएँ/दृष्टांत मिलते हैं, वे सभी ग्रंथ निश्चय ही सातवीं शताब्दी के पूर्व के हैं। यहाँ प्रश्न यह उपस्थित होता है कि ये गाथाएँ / दृष्टांत मिलते हैं, वे सभी ग्रंथ निश्चय ही सातवीं शताब्दी से पूर्व के हैं। यहाँ प्रश्न यह उपस्थित होता है कि ये गाथाएँ संस्तारक प्रकीर्णक से उन ग्रंथों में ली गई हैं अथवा उन ग्रंथों से संस्तारक प्रकीर्णक में ली गई हैं ? चूँकि चन्द्रवेध्यक, महाप्रत्याख्यान और मरणविभक्ति आदि प्रकीर्णकों के नाम नन्दीसूत्र की सूची में उल्लिखित हैं, अतः संभावना यही है कि संस्तारक प्रकीर्णक के कर्ता ने इन गाथाओं को अमूक ग्रंथों से लिया हो और वह इनसे परवर्ती हो। ___ ऊपर एक अन्य तालिका में हमने आपत्तिकाल में समाधिमरण ग्रहण करने वाले कुछ व्यक्तियों के जो दृष्टांत दिये हैं, वे दृष्टांत यापनीय परंपरा मान्य भगवती आराधना में भी यथावत रूप से मिलते हैं। किन्तु यह मानना है कि इन दृष्टांतों को संस्तारककर्ता ने भगवती आराधना से लिया है, इसलिए उचित प्रतीत नहीं होता है कि भगवती आराधना में समाधिमरण ग्रहण करने वालों के जोदृष्टांत दिये गये हैं वे दृष्टांत मरणविभक्ति प्रकीर्णक में भी यथावत रूप से मिलते हैं। अतः संभावना यह है कि संस्तारक और भगवती आराधना दोनों के कर्ताओं ने इन दृष्टांतों को मरणविभक्ति से ग्रहीत किया होगा । पुनः मरणविभक्ति, संस्तारक और भगवती आराधना में समाधिमरण संबंधीजो-जो दृष्टांत दिये गये हैं, वे तीनों ग्रंथों में लगभग समान हैं, इससे यह भी प्रतीत होता है कि संस्तारक प्रकीर्णक मरणविभक्ति और भगवती आराधना के या तो समकालिक होगाया इनसे किंचित परवर्ती। संस्तारक प्रकीर्णक में आपत्तिकाल में मृत्यु सन्निकट जानकर अकस्मात्
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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