SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 338
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (25) (26) (27) (28) (29) (30) (31) जावंति केइ दुक्खा सरीरा माणसा व संसारे । पत्तो अणंतखुत्तो कायस्स ममत्त दोसेणं ॥ (संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 100 ) तम्हा सरीरमाई ... सब्भितर - बाहिरं निरवसेसं । छिद ममत्तं सुविहिय ! जइ इच्छसि उत्तिमं अहं ॥ (संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 101 ) आयरिय उवज्झाए सीसे साहम्मिए कुल गणे य । जेमे के कसाया सव्वे तिविहेण खामि ॥ ( संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 103 ) सव्वस्स समणसंघस्स भगवओ अंजलिं करिय सीसे । सव्वं खमावइत्ता अहमवि खामेमि सव्वस्स ॥ (संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 104 ) धीधणियबद्धकच्छा अणुत्तरविहारिणो समक्खाया। सावयदाढगया वि हु साहंती उत्तमं अहं ॥ (संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 110) अन्नाणी कम्मं खवे बहुयाहिं वासकोडीहिं । तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ ऊसासमेत्तेणं ॥ (संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 114 ) अट्ठविहकम्ममूलं बहुएहिं भवेहिं संचियं पावं । तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ ऊसासमित्तेणं ॥ 332 (संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 115 )
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy