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(9)
उज्जेणीनयरीए अवंतिनामेण विस्सुओ आसी। पाओवगमनिवन्नो सुसाणमज्झम्मि एगंते॥
तिन्नि रयणीओ खइओ, भल्लुंकी रुट्ठिया विकड्ढंती। सो वि तहखज्जमाणो पडिवन्नो उत्तमं अटुं॥
(संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 65, 66)
(10)
जल्ल-मल-पंकधारी आहारो सीलसंजमगुणाणं । अज्जीरणो उ गीओ कत्तियअज्जो सरवणम्मि॥
रोहीडगम्मि नयरे आहारं फासुयं गवेसंतो। कोवेण खत्तिएण य भिन्नो सत्तिप्पहारेणं॥
एगंतमणावाए विच्छिन्ने थंडिले चइअ देहं। सो वि तह भिन्नदेहो पडिवन्नो उत्तमं अटुं॥
(संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 67-69)
(11)
पाडलिपुत्तम्मि पुरे चंदगपुत्तस्स चेव आसीय। नामेण धम्मसीहो चंदसिरि सो पयहिऊणं ॥
कोल्लयरम्मि पुरवरे अह सो अब्भुट्ठिओ, ठिओ धम्मे। कासीय गिद्धपिढे पच्चक्खाणं विगयसोगो॥
अह सो वि चत्तदेहो तिरियसहस्सेहिं खज्जमाणो य। सो वि तहखज्जमाणो पडिवन्नो उत्तमं अटुं॥
(संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 70-72)