SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 322 (9) उज्जेणीनयरीए अवंतिनामेण विस्सुओ आसी। पाओवगमनिवन्नो सुसाणमज्झम्मि एगंते॥ तिन्नि रयणीओ खइओ, भल्लुंकी रुट्ठिया विकड्ढंती। सो वि तहखज्जमाणो पडिवन्नो उत्तमं अटुं॥ (संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 65, 66) (10) जल्ल-मल-पंकधारी आहारो सीलसंजमगुणाणं । अज्जीरणो उ गीओ कत्तियअज्जो सरवणम्मि॥ रोहीडगम्मि नयरे आहारं फासुयं गवेसंतो। कोवेण खत्तिएण य भिन्नो सत्तिप्पहारेणं॥ एगंतमणावाए विच्छिन्ने थंडिले चइअ देहं। सो वि तह भिन्नदेहो पडिवन्नो उत्तमं अटुं॥ (संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 67-69) (11) पाडलिपुत्तम्मि पुरे चंदगपुत्तस्स चेव आसीय। नामेण धम्मसीहो चंदसिरि सो पयहिऊणं ॥ कोल्लयरम्मि पुरवरे अह सो अब्भुट्ठिओ, ठिओ धम्मे। कासीय गिद्धपिढे पच्चक्खाणं विगयसोगो॥ अह सो वि चत्तदेहो तिरियसहस्सेहिं खज्जमाणो य। सो वि तहखज्जमाणो पडिवन्नो उत्तमं अटुं॥ (संस्तारक प्रकीर्णक, गाथा 70-72)
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy