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________________ 209 नन्दीश्वर द्वीप के मध्य में चारों विदिशाओं में चाररतिकर पर्वत हैं, यह उल्लेख द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, स्थानांगसूत्र, हरिवंश पुराण तथा लोकविभागआदि ग्रंथों में मिलता है। इन सभी ग्रंथों में इन पर्वतों की ऊँचाई 1000 योजन तथा विस्तार 10000 योजन बतलाया गया है। द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, हरिवंशपुराण तथा लोकविभाग आदि ग्रंथों के अनुसार कुण्डल द्वीप के मध्य में कुण्डल पर्वत है। द्वीपसागर प्रज्ञप्ति तथा हरिवंशपुराण में इन पर्वतों की ऊँचाई 42000 योजन तथा जमीन में गहराई 1000 योजन मानी गई है। किन्तु लोकविभाग के अनुसार इन पर्वतों की ऊँचाई 75000 योजन है। तीनों ग्रंथों में यहभी उल्लिखित है कि कुण्डल पर्वतके ऊपर चारों दिशाओं में चार-चार शिखर हैं। इन शिखरों के नाम भी इन ग्रंथों में लगभग समान बतलाए गए हैं। रुचक पर्वत के शिखर तल पर चारों दिशाओं में आठ-आठ शिखर हैं, यह उल्लेख द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, स्थानांगसूत्र एवं लोकविभाग में मिलता है। इन शिखरों के नाम एवं दिशा क्रम भी इन तीनों ग्रंथों में लगभग समान रूप से निरुपित है। किन्तु हरिवंशपुराण में इन शिखरों का नामोल्लेख नहीं हुआहै। द्वीपसागर प्रज्ञप्ति तथा व्याख्याप्रज्ञप्ति के अनुसार रुचक समुद्र में असंख्यात् द्वीप-समुद्र हैं। रुचक समुद्र में जाने पर पहले अरुणद्वीप और उसके बाद अरुण समुद्र आता है।अरुण समुद्र में दक्षिण दिशा की ओर 42000 योजन जाने पर 1721 योजन ऊँचा तिगिच्छि पर्वत आता है। दोनों ही ग्रंथों में यह भी कहा गया है कि इस पर्वत संकीर्ण है। द्वीपसागर प्रज्ञप्ति में इस पर्वत का विस्तार अधोभाग में 1022 योजन, मध्यभाग में 424 योजन तथा शिखर-तल पर 723 योजन बतलाया गया है। द्वीपसागर प्रज्ञप्ति प्रकीर्णक में अंजन पर्वत, दधिमुख पर्वत, रतिकर पर्वत, कुण्डल पर्वत तथा रुचक पर्वत आदि अनेक पर्वतों का विस्तार अधोभाग में अधिक, उससे कम मध्य भाग में और सबसे कम शिखर तल का बतलाया गया है। किन्तु तिगिच्छि पर्वत का मध्यवर्ती विस्तार कम बतलाया गया है। यद्यपि पर्वत के संदर्भ में ऐसी कल्पना नहीं की जा सकती कि उसका मध्यवर्ती भाग संकीर्ण हो तथापि दोनों ग्रंथों में यह उल्लेख है कि इन पर्वत का मध्यवर्ती भाग वज्रमय है, इस आधार पर इस पर्वत का यही आकार निर्मित होता है। द्वीपसागर प्रज्ञप्ति के अनुसार तिगिच्छि पर्वत की दक्षिण दिशा की ओर
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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