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________________ 194 (14) एपंचसयसहस्सं 100000 वित्थिण्णाओसहस्समोविद्धा 1000। निम्मच्छ-कच्छभाओजलभरियाओअसव्वाओ॥ (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा 43) (15) पुक्खरणीणचउदिसिंपंचसए 500 जोयणाणाबाहाए। पुव्वाइआणुपुष्वीचउद्दिसिंहोंतिवणसंडा॥ पागारपरिक्खित्तासोहंते तेवणाअहिंयरम्मा। पंचसए 500 वित्थिन्ना, सयस्सहस्सं 100000 चआयामा।। पुव्वेणअसोगवणं, दक्खिणओहोइसत्तिवन्नवणं। अवरेणचंपयवणं, चूयवणंउत्तरे पासे॥ - (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा 44-46) (16) रयणमुहाउदहिमुहापुक्खरणीणंहवंति मज्झम्मि। दस चेव सहस्सा 10000 वित्थरेण, चउस8ि64 मुव्विद्धा (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा 48) (17) जो दक्खिणअंजणगो तस्सेव चउद्दिसिंचबोद्धव्वा। पुक्खरिणीचत्तारि वि इमेहिनामेहि विनेया॥ पुव्वेण होइभद्दा 1, होइसुभद्दाउ दक्खिणेपासे 2। अवरेणहोइ कुमुया 3, उत्तरओपुंडरिगिणी उ4॥ - (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा 52-53) (18) अवरेणअंजणो उहोइ तस्सेवचउदिसिंहोंति। पुक्खरिणीओ, नामेहिं इमेहिं चत्तारि विनेया॥ पुव्वेण होइ विजया 1, दक्खिणओ होइवेजयंतीउ 2। अवरेणंतु जयंती 3, अवराइय उत्तरे पासे 4॥ (द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, गाथा 54-55)
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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