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________________ 164 (14) जो दक्खिणअंजणगो तस्सेवचउद्दिसिंचबोद्धव्वा। पुक्खरिणीचत्तारि विइमेहिं नामेहि विनेया॥ पुव्वेण होइभद्दा 1, होइसुभद्दा उदक्खिणेपासे 2। अवरेण होइ कुमुया 3, उत्तरओपुंडरिगिणीउ 4॥ (द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, गाथा 52/53) (15) अवरेण अंजणोजो उहोइतस्सेव चउदिसिंहोंति। पुक्खरिणीओ, नामेहिं इमेहिं चत्तारि विनेया॥ पुववेण होइ विजया 1, दक्खिणओहोइ वेजयंती उ2। अवरेणंतु जयंती 3, अवराइय उत्तरेपासे 4॥ . (द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, गाथा 54/55) (16) जो उत्तरअंजणगो तस्सेव चउद्दिसिंचबोद्धाव्वा। पुक्खरिणीओचत्तारि, इमेहिं नामेहिं विनेया॥ पुव्वेण नंदिसेणा 1,आमोहापुण दक्खिणे दिसाभाए 2। अवरेणंगोत्थूभा 3 सुदंसणा होइ उत्तरओ 4॥ (द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, गाथा 56/57) (17) एकासि एगनउया पंचाणउइंभवे सहस्साई 819195000। नंदीसरवरदीवे ओगाहित्ताणरइकरगा॥ उच्चत्तेणसहस्सं 1000, अड्ढाइज्जेसएय उव्विद्धा 250। दसचेवसहस्साइं 10000 वित्थिण्णा होंति रइकरगा॥ (द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, गाथा 58/59) (18) एक्कत्तीस सहस्सा छच्चेव सएहवंति तेवीसे 31623। रइकरगपरिक्खेवो किंचिविसेसेण परिहीणो॥ (द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, गाथा 60) (19) जो पुव्वदक्खिणेरइकरगो तस्स उचउद्दिसिंहोंति। सक्कऽगमहिस्सीणं एया खलु रायहाणीओ। देवकुरु 1, उत्तरकुरा 2, एया पुव्वेण दक्खिणेणंच। अवरेण उत्तरेण यनंदुत्तर 3 नंदिसेणा 4 य॥ (द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, गाथा 62-63)
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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