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________________ 146 'दीवसागरपण्णत्तिसंगहणीगाहाओ' नामक जो प्रकीर्णक मुनि पुण्य विजयजी द्वारा संपादित ‘पइण्णसुत्ताई' ग्रंथ में प्रकाशित हुआ है उसके संदर्भ में मुनिश्री पुण्यविजयजी ने अपनी प्रस्तावना में यह प्रश्न उठाया है कि प्रस्तुत प्रकीर्णक और नन्दीसूत्र तथा पाक्षिक सूत्र में उल्लिखित द्वीप सागरप्रज्ञप्ति एक ही है या भिन्न-भिन्न है, यह विचारणीय है। पूज्य मुनिजी को इस प्रकीर्णक के संदर्भ में यह भ्रांति क्यों हुई ? यह हम नहीं जानते हैं। जहाँ तक द्वीपसागरप्रज्ञप्ति संग्रहणी गाथा' - नामक प्रस्तुत प्रकीर्णक का प्रश्न है, यह वहीं प्रकीर्णक है- जिसका उल्लेख नंदीसूत्र और पाक्षिक सूत्र में हैं। क्योंकि एक तो इसकी भाषा आगमों की भाषा से भिन्न या परवर्ती नहीं लगती, दूसरे विषय वस्तु की दृष्टि से भी ऐसा कोई परवर्ती उल्लेख इसमें नहीं पाया जाता है जिससे इस प्रकीर्णक को उससे भिन्न माना जाय। इसकी विषय वस्तु आगमिक उल्लेखों के अनुकूल ही है, इस दृष्टि से भी इसके भिन्न होने की कल्पना नहीं की जा सकती है। - यदि हम यह मानते हैं कि प्रस्तुत द्वीपसागरप्रज्ञप्ति संग्रहणीगाथा वह ग्रंथ नहीं है जिसका उल्लेख स्थानांगसूत्र, नन्दीसूत्र एवं पाक्षिक सूत्र आदि आगम ग्रंथों में हुआ है तो हमें यह कल्पना करनी होगी कि वह गद्य रूप में लिखित कोई विस्तृत ग्रंथरहा होगा और उस ग्रंथ की संग्रहणी के रूप में प्रस्तुत ग्रंथ की रचना हुई होगी। फिर भी इतना तो निश्चित सत्य है कि दोनों ग्रंथों में विषयवस्तु की दृष्टि से कोई अंतर नहीं रहा होगा। यदि हम इसे भिन्न ग्रंथ मानते हैं तो भी यह मानने में कोई बाधा नहीं आती कि इसका रचनाकाल ईस्वी सन् की 5वीं शताब्दी के लगभग हो, क्योंकि संग्रहणी देवर्द्धि की वाचना से पूर्व हो चुकी थी। आगमों में अनेक जगह कई उल्लेख 'गाहाओ' या 'संग्रहणी' के रूप में हुए हैं। अतः यह मानना उचित है कि दीवसागरपण्णत्तिसंगहणी गाहाओ' और स्थानांगसूत्र, नन्दीसूत्र तथा पाक्षिक सूत्र आदि ग्रंथों में उल्लिखित 'दीवसागरपण्णत्ती' भिन्न-भिन्न नहीं होकर एक ही ग्रंथ है। दिगम्बर परंपरामें द्वीपसागरप्रज्ञप्ति का उल्लेख षट्खण्डागम की 1. मुनिपुण्यविजय - पइण्णसुत्ताई- प्रस्तावना, पृष्ठ 53।
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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