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________________ (48) लज्जाइ गारवेण य बहुस्सुयमएण वाऽवि दुच्चरियं । जेन कति गुरुणं न हु ते आराहगा हुंति ॥ (उत्तराध्ययननिर्युक्ति, गाथा 217 ) (49) (i) न वि कारणं तणमओ संथारो न वि य फासुया भूमी । अप्पा खलु संथारो हव विसुद्धे चरित्तम्मि ॥ (संस्तारक, गाथा 53 ) (ii) ण वि कारणं तणादोसंथारो ण वि य संघसमवाओ। साधुस्स संकिलेसंतस्स य मरणावसाणम्मि ॥ (भगवती आराधना, गाथा 1667 ) ' ( 50 ) (i) जं अन्नाणी कम्मं खवेई बहुयाहिं वासकोडीहिं । तं णाणी तिहिं गुत्तो खवेदि उस्सासमेत्तेणं ॥ 1. 2. 3. (संस्तारक, गाथा 114) (तित्थोगाली, गाथा 1223) (पंचवस्तु, गाथा 564) (ii) जं अण्णाणी कम्मं खवेदि भवसय सहस्सकोडीहिं । तं णाणी तिहिं गुत्तो खवेदि उस्सासमेत्तेणं ॥ (प्रवचनसार, गाथा 3 / 38 ) ( 51 ) (i) न हु मरणम्मि उवग्गे सक्का बारसविहो सुयक्खंधो सव्वो अणुचिंतेउं धणियं पि समत्थचित्तेणं ॥ (चन्द्रवेध्यक, गाथा 96) (ii) नहुतम्मि देसकाले सक्को बारसविहो सुयक्खंधे । सव्वो अणुचिंतेउं धणियं पि समत्थचित्तेणं ॥ ( आतुरप्रत्याख्यान, गाथा 59 ) ( 52 ) (i) एक्कम्मि वि जम्मि पते संवेगं कुणति वीयरागमते । तं तस्स होति णाणं जेण विरागत्तणमुवेति ॥ (विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 3577) (ii) एक्कम्मि विजम्मि पए संवेगं वच्चए नरोऽभिक्खं । तं तस्स होइ नाणं जेण विरागत्तणमुवेइ || (चन्द्रवेध्यक, गाथा 93) मात्र एक चरण समान है । तित्थोगाली मे 'बहुयाहिं' के स्थान पर 'बहुयाहि' । तित्थोगाली में 'तिहिं' के स्थान पर 'तिहि' । 133
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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