SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (38) कोहो माणो माया लोभे पिज्जे तहेव दोसे य । मिच्छत्त वेअ अरइ रइ हास सोगे य दुग्गंछा ॥ (उत्तराध्ययननिर्युक्ति, गाथा 240 ) (39) (i) किण्हा नीला काऊ तिन्नि वि एयाजो अहम्मलेसाओ। एयाहि तिहि वि जीवो दुग्गइं उववज्जई बहुसो ॥ (उत्तराध्ययनसूत्र, गाथा 34 / 56 ) (ii) किण्हा नीला काओ लेस्साओ तिण्णि अप्पसत्थाओ । पजहइ विरायकरणो संवेगंणुत्तरं पत्तो ॥ (भगवती आराधना, गाथा 1902) ( 40 ) (i) तेऊ पम्हा सुक्का तिन्नि वि एयाओ धम्मलेसाओ । एयाहि तिन्नि वि जीवो सुग्गइं उववज्जई बहुसो ॥ (उत्तराध्ययनसूत्र, गाथा 34 / 57 ) (ii) तेओ पहा सुक्का लेस्साओ तिण्णि विदुपसत्थाओ। पडिवज्जेइ य कमसो संवेगंणुत्तरं पत्तो ॥ (भगवती आराधना, गाथा 1903) (41) (i) जइ ताव सावयाकुलगिरिकंदर-विसमकडग- दुग्गेसु । साहिंति उत्तमट्टं धिइधणियसहायगा धीरा ॥ (आराधनापताका, गाथा 89 ) ( 42 ) (i) कि पुण अणगारसहायगेण अन्नोन्नसंगहबलेण परलोइए न सक्का साहेउं अप्पणो अट्ठे ? ॥ 1. यहाँ आंशिक रूप से शाब्दिक भिन्नता है । (आराधनापताका, गाथा 90 ) (ii) किं पुण अणगारसहायएण अण्णोण्णसंगहबलेण । परलोइयं ण सक्कइ, साहेउं उत्तिमो अट्ठो ॥ (निशीथसूत्र भाष्य, गाथा 3913) (iii) किं पुण अणयारसहायगेण कीरयंत पडिकम्मो । संघ ओलते आराधेदुं ण सक्केज्ज || (भगवती आराधना, गाथा 1554) (43) (i) जिणवयणमप्पमेयं महुरं कन्नामयं सुर्णितेणं । सक्का हु साहुमज्झे संसारमहोयहिं तरिडं ॥ (आराधनापताका, गाथा 91 ) 129
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy