SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 117 खमामिसव्वजीवाणंसव्वे जीवाखमंतु मे। मित्ती मे सव्वभूदेसु वेरमज्झंण केणवि॥ (मूलाचार, गाथा 43) (8) (i) निंदामि निंदणिज्जंगरहामियजंचमेगरहणिज्ज। आलोएमि यसव्वंसभिंतर बाहिरं उवहिं॥ (आतुरप्रत्याख्यान, गाथा 32) (ii) जिंदामि जिंदणिज्जंगरहामियजंचमे गरहणीयं। आलोचेमियसव्वंसम्भंतरबाहिरं उवहिं॥ (मूलाचार, गाथा 55) (9) (i) ममत्तं परिवज्जामि निम्ममत्तं उवढिओ। आलंबणंचमे आया, अवसेसंचवोसिरे॥ (आतुरप्रत्याख्यान, गाथा 24) (ii) ममतिं परिवज्जामि णिम्ममत्तिमुवट्ठिदो। आलंबणंचमे आदाअवसेसंचवोसरे॥ (नियमसार, गाथा 99) (iii) ममतिं परिवज्जामि णिम्ममत्तिमुवट्ठिदो। आलंबणंचमे आदाअवसेसाइंवोसरे॥ (मूलाचार, गाथा 45) (10) (i) आयाहुमहं नाणे, आया मे दसंणेचरित्तेय। आयापच्चक्खाणे, आया मे संजमे जोगे॥ (आतुरप्रत्याख्यान, गाथा 25) (ii) आदा 2 खुमज्झणाणे आदामे दंसणे चरित्ते य। आदापच्चक्खाणे आदामे संवरे जोगे॥ (नियमसार, गाथा 100) (भावपाहुड,गाथा 58) (मूलाचार, गाथा 46) (iii) आदाखुमज्झणाणंआदामे दंसणंचरित्तंच। आदापच्चक्खाणंआदामे संवरोजोगो॥ (समयसार, गाथा 277) 1. 2. मात्र पहले दो चरण हीसमान है। मूलाचारमे 'खु' के स्थान पर हु' है।
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy