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संक्षिप्त उल्लेख है । चूर्णियों का काल लगभग 7वीं शताब्दी माना जाता है, अतः महाप्रत्याख्यान का रचनाकाल नन्दी चूर्णि से पूर्व ही होना चाहिए। पुनः महाप्रत्याख्यान का स्पष्ट निर्देश नन्दी सूत्र एवं पाक्षिक सूत्र मूल में भी है। नन्दीसूत्र के कर्ता देववाचक के समय के संदर्भ में मुनि श्री पुण्यविजयजी एवं पं. दलसुखभाई मालवणिया ने विशेष चर्चा की है। नन्दी चूर्णि में देववाचक को दूष्यगणी का शिष्य कहा गया है। कुछ विद्वानों नन्दसूत्र के कर्ता देववाचक और आगमों को पुस्तकारूढ़ करने वाले देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण को एक ही मानने की भ्रांति की हैं । इस भ्रांति के शिकार मुनिश्री कल्याणविजयजी भी हुए हैं, किन्तु उल्लेखों के आधार पर जहाँ देवर्द्धि के गुरु आर्य शांडिल्य हैं, वहीं देववाचक के गुरु दूष्यगणी है। अतः यह सुनिश्चित है कि देववाचक और देवर्द्धि एक ही व्यक्ति नहीं हैं । देववाचक ने नन्दीसूत्र स्थविरावली में स्पष्ट रूप से दूष्यगणी का उल्लेख किया है।
पं. दलसुखभाई मालवणिया ने देववाचक का काल वीर निर्वाण संवत् 1020 अथवा विक्रम संवत् 550 माना है, किन्तु यह अंतिम अवधि ही मानी जाती है । देववाचक उससे पूर्व ही हुए होंगे। आवश्यक निर्युक्ति में नंदी और अनुयोगद्वार सूत्रों का उल्लेख, और आवश्यक निर्युक्ति को आर्यभद्र या द्वितीय भद्रबाहु की रचना भी माना जाएं, तो उसका काल विक्रम की पाँचवी शताब्दी के पूर्व ही सिद्ध होता है। इन सब
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आधारों से यह सुनिश्चित है कि देववाचक और उसके द्वारा रचित नन्दीसूत्र ईसा की पाँचवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध की रचना है। इस संदर्भ में विशेष जानने के लिए हम मुनिश्री पुण्यविजयजी एवं पं. दलसुखभाई मालवाणिया के नन्दीसूत्र की भूमिका में देववाचक के समय संबंधी चर्चा को देखने का निर्देश करेंगे। चूँकि नन्दीसूत्र के महाप्रत्याख्यान का उल्लेख है, अतः इस प्रमाण के आधार पर हम केवल इतना ही कह सकते हैं कि यह ग्रंथ ईसवी सन् की 5वीं शताब्दी के पूर्व निर्मित हो चुका था । किन्तु इसकी रचना की उत्तर सीमा क्या हो सकती है, यह कह पाना कठिन है। महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक की अनेक गाथाएँ उत्तराध्ययन जैसे प्राचीन आगम में, आवश्यकनिर्युक्ति, उत्तराध्ययननियुक्ति तथा ओघनियुक्ति आदि नियुक्तियों में तथा मरणविभक्ति, आतुरप्रत्याख्यान, चन्द्रवेध्यक, तित्थोगाली, संस्तारक, आराधनापताका तथा आराधनाप्रकरण आदि प्रकीर्णकों में साथ ही यापनीय एवं दिगम्बर परंपरा के मान्य ग्रंथों भगवती आराधना, मूलाचार, नियमसार, समयसार, भावपाहुड आदि में हैं। ये