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________________ 1- आचार्य भद्रबाहु ( ईस्वी पूर्व 3री शती) वह चरम श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु जैन धर्म की सभी परंपराओं के द्वारा मान्य रहे हैं। कल्पसूत्र स्थविरावली के प्राचीनतम उल्लेख से लेकर परवर्ती ग्रंथों के संदर्भों के आधार पर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को लेकर आधुनिक युग में पर्याप्त उहापोह या विचार-विमर्श हुआ है, किन्तु उनके जीवनवृत्त और कृतित्व के संबंध में ईसा पूर्व से लेकर ईसा की पन्द्रहवीं शती तक लिखित विभिन्न ग्रंथों में जो भी उल्लेख प्राप्त होते हैं, उनमें इतना मतवैभिन्न्य है कि सामान्य पाठक किसी समीचीन निष्कर्ष पर पहुँच नहीं पाता है । भद्रबाहु के चरित्र लेखकों ने उनके संबंध में जो कुछ लिखा है, अनुश्रुतियों एवं स्वैर कल्पनाओं का ऐसा मिश्रण है, जिसमें से सत्य को खोज पाना एक कठिन समस्या है। आर्यभद्र या भद्रबाहु नामक विविध आचार्यों के संबंध में जो कुछ अनुश्रुति से प्राप्त हुआ, उसे चतुर्दश पूर्वधर और द्वादशांगी के ज्ञाता श्वेताम्बर परंपरा के अनुसार भगवान् महावीर के सप्तम पट्टधर और दिगंबर परंपरा के अनुसार अष्टम पट्टधर चरम श्रुतकेवली आर्य भद्रबाहु के साथ जोड़ दिया गया है। यही कारण है कि उनके जीवनवृत्त और कृतित्व के संबंध में एक भ्रमपूर्ण स्थिति बनी हुई है और अनेक परवर्ती घटनाक्रम और कृतियाँ उनके नाम के साथ जुड़ गई हैं । ज्ञातव्य है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर परंपराओं में आर्य भद्रबाहु अथवा आर्यभद्र नामक अनेक आचार्य हुए हैं। परवर्ती लेखकों ने नाम साम्य के आधार पर उनके जीवन के घटनाक्रमों और कृतित्व को भी चरम श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु के साथ जोड़ दिया। मात्र यही नहीं, कहीं-कहीं तो अपनी साम्प्रदायिक मान्यताओं को परिपुष्ट करने के लिये स्व- कल्पना से प्रसूत अंश भी उनके जीवनवृत्त के साथ मिला दिये गये हैं। इस संबंध में आचार्य हस्तीमलजी ने अपने ग्रंथ 'जैन धर्म का मौलिक इतिहास भाग - 2, पृष्ठ 327 पर जो कुछ लिखा है, वह निष्पक्ष एवं तुलनात्मक दृष्टि से इतिहास के शोधार्थियों के लिये विचारणीय है । वे लिखते हैं- “भद्रबाहु के जीवन चरित्रविषयक दोनों परंपराओं के ग्रंथों का समीचीनतया अध्ययन करने से एक बड़ा आश्चर्यजनक तथ्य प्रकट होता है कि न श्वेताम्बर परंपरा के ग्रंथों में आचार्य भद्रबाहु के जीवन-चरित्र के संबंध में मतैक्य है और न दिगम्बर परंपरा के ग्रंथों में ही । भद्रबाहु के जीवन संबंधी दोनों परंपराओं के -
SR No.006191
Book TitleJain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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