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13. आचार्य हेमचंद्र : एक युगपुरुष
(ईस्वी सन् की 12वीं शती) आचार्य हेमचंद्र भारतीय मनीषारूपी आकाश के एक देदीप्यमान नक्षत्र हैं। विद्योपासक श्वेताम्बर जैन आचार्यों में बहुविध और विपुल साहित्यस्रष्टा के रूप में आचार्य हरिभद्र के बाद यदि कोई महत्त्वपूर्ण नाम है तोवह आचार्य हेमचंद्र का ही है। जिस प्रकार आचार्य हरिभद्र नेविविध भाषाओं में जैन विद्या की विविध विद्याओं पर विपुल साहित्य का सृजन कियाथा, उसी प्रकार आचार्य हेमचंद्रनेविविध विद्याओं पर विपुल साहित्य का सृजन किया है। आचार्य हेमचंद्र गुजरात की विद्वत् परम्परा के प्रतिभाशाली और प्रभावशाली जैन आचार्य हैं। उनके साहित्य में जोबहुविधता है वह उनके व्यक्तित्व एवं उनके ज्ञान की बहुविधता का परिचायिका है। काव्य, छन्द, व्याकरण, कोश, कथा, दर्शन, अध्यात्म और योग-साधना आदि सभी पक्षों कोआचार्य हेमचंद्र नेअपनी सृजनधर्मिता में समेट लिया है। धर्मसापेक्ष और धर्मनिरपेक्ष दोनों ही प्रकार के साहित्य के सृजन में उनके व्यक्तित्व की समानता का अन्य कोई नहीं मिलता है। जिस मोढ़वणिक जाति नेसम्प्रति युग में गांधी जैसेमहान् व्यक्ति कोजन्म दिया उसी मोढ़वणिक जाति नेआचार्य हेमचंद्र कोभी जन्म दियाथा।
आचार्य हेमचंद्र का जन्म गुजरात के धन्धुका नगर में श्रेष्ठि चाचिग तथा माता पाहिणी की कुक्षि सेई. सन् 1088 में हुआ था। जोसूचनाएं उपलब्ध हैं उनके आधार पर यह माना जाता है कि हेमचंद्र के पिता शैव और माता जैनधर्म की अनुयायी थीं।1 आजभी गुजरात की इस मोढ़वणिक जाति में वैष्णव और जैन दोनों धर्मों के अनुयायी पाए जातेहैं। अतः हेमचंद्र के पिता चाचिग के शैवधर्मावलम्बी और माता पाहिणी के जैनधर्मावलम्बी होनेमें कोई विरोध नहीं है, क्योंकि प्राचीनकाल सेही भारतवर्ष में ऐसेअनेक परिवार रहेहैं, जिनके सदस्य भिन्न-भिन्न धर्मों के अनुयायी होतेथे। सम्भवतः पिता के शैवधर्मावलम्बी और माता के जैनधर्मावलम्बी होनेके कारण ही हेमचंद्र के जीवन में धार्मिक समन्वयशीलता के बीज अधिक विकसित होसके। दूसरेशब्दों में धर्मसमन्वय की जीवनदृष्टि तोउन्हें अपनेपारिवारिक परिवेशसेही मिली थी।
__ आचार्य देवचंद्र जोकि आचार्य हेमचंद्र के दीक्षागुरु थे, स्वयं भी प्रभावशाली आचार्य थे। उन्होंनेबालक चंगदेव (हेमचंद्र के जन्म का नाम) की प्रतिभा कोसमझ लिया था, इसलिए उन्होंनेउनकी माता से उन्हें बाल्यकाल में ही प्राप्त कर लिया।