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चंद्रगुप्त था- ऐसा कोई प्रमाण मिलता है और न श्रुतकेवलीभद्रबाहु से अशोक के पौत्र चंद्रगुप्त की समकालिकता ही सिद्ध होती है । अतः, इस कथानक में स्वैर कविकल्पना ही अधिक परिलक्षित होती है। ___श्वेताम्बर प्रबंधों में भी नैमित्तिक भद्रबाहु को प्रतिष्ठानपुर (पैठण-दक्षिण महाराष्ट) का निवासी माना गया है, अतः इनका संबंध दक्षिण में कर्नाटक की यात्रा से हो सकता है । पुनः, श्रुतकेवली भद्रबाहु के संबंध में ये अभिलेख इसलिये भी प्रामाणिक नहीं लगते हैं कि ये उनके स्वर्गवास से एक हजार वर्ष बाद के हैं, अतः श्रुतकेवली भद्रबाहु के संबंध में इनकी प्रामाणिकता एक अनुश्रुति से अधिक नहीं मानी जा सकती है। हाँ, यदि ये नैमित्तिक भद्रबाहु से संबंधित हैं, तो इनकी प्रामाणिकता एवं विश्वसनीयता काफी बढ़ जाती है, क्योंकि दोनों के काल में मात्र 150 वर्ष का अंतर है। इस चर्चा से यह भी ज्ञात हो जाता है कि श्रुतकेवली भद्रबाहु और नैमित्तिकभद्रबाहु में लगभग 800 वर्षों कालंबाअंतराल है।
श्वेताम्बर परंपरा के ग्रंथों में श्रुतकेवली भद्रबाहु के कार्यों में उनके द्वारा महाप्राण नामक ध्यान की साधना करने एवं स्थूलिभद्र को 14 पूर्वो की वाचना देने की संपूर्ण घटना का विवरण आवश्यकनियुक्ति (लगभग 3री शती) एवं तित्थोगालीपइण्णा" (तीर्थोद्गालिक प्रकीर्णक-लगभग 5वीं शती) में मिलता है। संक्षेप में, द्वादशवर्षीय दुष्काल के बाद श्रमण संघपाटलीपुत्र में एकत्रित हुआथा। अंग साहित्य को व्यवस्थित करने हेतु आगमों की इस प्रथम वाचना का आयोजन हुआउसमें ग्यारह अंगों का पुनः संकलन किया गया, किन्तु दृष्टिवाद एवं पूर्वो का संकलन नहीं हो सका, क्योंकि उस वाचना में इनको संपूर्ण रूप से जानने वाला कोई भी श्रमण उपस्थित नहीं था। उस समय दृष्टिवाद और 14 पूर्वो के संपूर्ण ज्ञाता मात्रभद्रबाहु हीथे, जो नेपाल में महाप्राणध्यान की साधना कर रहे थे। श्रमण संघ के प्रतिनिधि के रूप में कुछ मुनि पाटलीपत्तन (पटना) से नेपाल की तराई में गये और उनसे वाचना देने की प्रार्थना की, भद्रबाहु ने अपनी ध्यान साधना में विघ्न रूप मानकर वाचना देने से इंकार कर दिया। वाचना देने से इंकार करने कर संघ द्वारा बहिष्कृत करने/सम्भोग विच्छेद रूप दण्ड का निर्देश देने के कारण वे पुनः वाचना देने में सहमत होते हैं। स्थूलिभद्र के साथ कुछ मुनि वाचना लेने जाते हैं, प्रारंभ में वाचना मंथर गति से चलती है। स्थूलिभद्र को छोड़कर शेष मुनि- संघ निराश होकर लौट आता है। स्थूलिभद्र की दस पूर्वो की