________________
117
आधार पर जांच करके यह बताया है कि उपर्युक्त गाथा में जिन वार-तिथि इत्यादि का उल्लेख है, वह वि. सं. 585 के अनुसार बिलकुल ठीक है, ज्योतिषशास्त्र के गणितानुसार प्रामाणिक है। ___इस प्रकार श्री हरिभद्रसूरि महाराज नेस्वयं ही अपनेसमय की अत्यंत प्रामाणिक सूचना देरखी है, तब उससेबढ़कर और क्या प्रमाण होसकता है जोउनके इस समय की सिद्धि में बाधा डाल सके? शंका होसकती है कि यह गाथा किसी अन्य नेप्रक्षिप्त की होगी' किंतु वह ठीक नहीं, क्योंकि प्रक्षेप करनेवाला केवल संवत् का उल्लेख कर सकता है, किंतु उसके साथ प्रामाणिक वार-तिथि आदि का उल्लेख नहीं कर सकता। हां, यदि धर्मकीर्ति आदि का समय इस समय में बाधा उत्पन्न कर रहा होतोधर्मकीर्ति आदि के समयोल्लेख के आधार पर श्री हरिभद्रसूरि कोविक्रम की छठी शताब्दी सेखींचकर आठवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में लेजानेकी अपेक्षा उचित यह है कि श्री हरिभद्रसूरि के इस अत्यंत प्रामाणिक समय-उल्लेख के बल सेधर्मकीर्ति आदि कोही छठी शताब्दी के पूर्वार्धया उत्तरार्ध में लेजायाजाए।
किंतु मुनि श्रीजयसुंदरविजयजी की उपर्युक्त सूचना के अनुसार जम्बूद्वीप क्षेत्र समासवृत्ति का रचनाकाल है। पुनः इसमें मात्र 85 का उल्लेख है, 585 का नहीं। इत्सिंग आदि का समय तोसुनिश्चित है। पुनः समस्या न केवल धर्मकीर्ति आदि के समय की है, अपितु जैन-परम्परा के सुनिश्चित समयवालेजिनभद्र, सिद्धसेनक्षमाश्रमण एवं जिनदासगणि महत्तर की भी है- इनमें सेकोई भी विक्रम संवत् 585 सेपूर्ववर्ती नहीं है, जबकि इनके नामोल्लेख सहित ग्रंथावतरणहरिभद्र के ग्रंथों में मिलतेहैं। इनमें सबसेपूर्ववर्ती जिनभद्र का सत्ता-समय भी शक संवत् 530 अर्थात् विक्रम संवत् 665 के लगभग है। अतः हरिभद्र के स्वर्गवास का समय विक्रम संवत् 585 किसीभी स्थिति में प्रामाणिक सिद्ध नहीं होता। . हरिभद्र कोजिनभद्रगणि, सिद्धसेनगणिऔर जिनदासमहत्तर का समकालिक माननेपर पूर्वोक्त गाथा के वि. सं. 585 कोशक संवत् मानना होगाऔर इस आधार पर हरिभद्र का समय ईसा की सातवीं शताब्दी का उत्तरार्ध सिद्ध होता है। हरिभद्र की कृति दशवैकालिकवृत्ति में विशेषावश्यकभाष्य की अनेक गाथाओं का उल्लेख यही स्पष्ट करता है कि हरिभद्रकासत्ता-समय विशेषावश्यकभाष्य के पश्चात् ही होगा।भाष्य का रचनाकाल शक संवत् 531 या उसके कुछ पूर्व का है। अतः यदि उपर्युक्त गाथा के