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है, वह भी भ्रांत है। उसका संबंध नैमित्तिक भद्रबाहु, जो वराहमिहिर के भाई थे, से तो हो सकता है, किन्तु श्रुतकेवलीभद्रबाहु से नहीं हो सकता है।
जहाँ तक भद्रबाहु के विचरण क्षेत्र का प्रश्न है- श्वेताम्बर परंपरा के अनुसार उनका विचरण क्षेत्र उत्तर में नेपाल के तराई प्रदेश से लेकर दक्षिण बंगाल के ताम्रलिप्ति तक प्रतीत होता है। उनके द्वारा 12 वर्ष तक नेपाल की तराई में साधना करने का उल्लेख तित्थोगालीपइन्ना (तीर्थोद्गालिक प्रकीर्णक-लगभग 5वीं-6ठी शती) एवं आवश्यक चूर्णी (7वीं शती) आदि अनेक श्वेताम्बर स्त्रोतों से प्राप्त होता है। यद्यपि दिगंबर स्त्रोतों से इस संबंध में कोई सङ्केत उपलब्ध नहीं होता है, फिर भी इसकी प्रामाणिकता संदेहास्पद नहीं लगती है।
___ जहाँ तक उनकी दक्षिण यात्रा का प्रश्न है- इस संबंध में श्वेताम्बर स्त्रोत प्रायः मौन हैं, दिगंबर स्त्रोतों में भी अनेक विप्रतिपत्तियाँ हैं। भाव संग्रह में आचार्य विमलसेन के शिष्य देवसेन ने श्वेताम्बर मत की उत्पत्ति के प्रसंग में निमित्तशास्त्र के पारगामी आचार्य भद्रबाहु द्वारा उज्जयिनी में बारह वर्षीय दुष्काल की भविष्यवाणी का उल्लेख किया है, जिसके परिणामस्वरूप अनेक गणनायकों ने अपने-अपने शिष्यों के साथ विभिन्न प्रदेशों में विहार किया। शांति नामक आचार्य सौराष्ट देश के वल्लभी नगर पहुँचे- जहाँ विक्रम की मृत्यु के 136 वर्ष पश्चात् श्वेताम्बर संघ की उत्पत्ति हुई।" इस प्रकार इस कथानक में भद्रबाहु के दक्षिण देश में बिहार का और चन्द्रगुप्त की दीक्षा का कोई उल्लेख नहीं है। पुनः, इसमें जिन नैमित्तिक भद्रबाहु का उल्लेख है, उनका सत्ताकाल विक्रम की दूसरी शताब्दी मान लिया गया है, जो भ्रांत प्रतीत होता है। आचार्य हरिषेण के बृहत्कथाकोश में भद्रबाहु द्वारा बारह वर्षीय दुष्काल की भविष्यवाणी करने, उज्जयिनी के राजा चंद्रगुप्त द्वारा दीक्षा ग्रहण कर भद्रबाहु से दस पूर्वो का अध्ययन करने तथा विशाखाचार्य के नाम से दक्षिणपथ के पुन्नाट देश (कर्नाटक) जाने और रामिल्ल, स्थूलाचार्य और स्थूलिभद्र के सिन्धु सौवीर देश जाने का निर्देश किया है, किन्तु उन्होंने आचार्य भद्रबाहु द्वारा उज्जयिनी के समीपवर्ती भाद्रपद देश (संभवतः वर्तमान मंदसौर का समीपवर्ती प्रदेश) में अनशन करने का उल्लेख किया है।"
इस प्रकार न केवल श्वेतांबर स्रोतों में, अपितु हरिषेण के बृहत्कथाकोश," श्रीचंद्र के अपभ्रंश भाषा में ग्रंथ कहाकोसु (वि. 12वीं शती) और देवसेन के