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वाचक माना गया। 'वीर' शब्द जहां आचारांग में कष्ट-सहिष्णु साधक या संयमी मुनि का पर्यायवाची था, वही आगे चलकर महावीर का पर्यायवाची मान लिया गया। यही स्थिति ‘तथागत' शब्द की है। आचारांग में ' तथागत' शब्द मुख्य रूप से प्रज्ञावान मुनि के लिए प्रयुक्त हुआ किंतु कालांतर में जैन परम्परा से यह शब्द लुप्त हो गया और बौद्ध परम्परा का विशिष्ट शब्द बन गया और वहां उसे भगवान बुद्ध का पर्यायवाची मान लिया गया।
इसी प्रकार यदि 'दंसण' (दर्शन) शब्द को लें तो उसके अर्थ में भी स्वयं जैन परम्परा में ही अर्थ परिवर्तन होता रहा है। प्राचीन जैनागम आचारांग में यह शब्द द्रष्टाभाव या साक्षीभाव के अर्थ में प्रयुक्त' हुआ, जबकि जैन - ज्ञान मीमांसा में यह शब्द ऐन्द्रिक और मानसिक संवेदनो के रूप में प्रयोग किया गया। आगमों में 'जाणई' और 'पासाई' ऐसे दो शब्दों का प्रयोग मिलता है। वहां 'पास' या 'पास' शब्द का अर्थ देखना था और वह दंसण का पर्यायवाची था। प्राचीनस्तर के ग्रंथों में दर्शन या देखने का तात्पर्य जागतिक घटनाओं को समभावपूर्वक देखने से रहा जैसे 'एस पासगस्स दंसणं, एस कुसल स्स दंसण' किंतु आगे चलकर यह शब्द जब जिण दंसण आदि विशेषणों के साथ प्रयुक्त हुआ तो वह 'दर्शन' (फिलासफी) का पर्यायवाची बन गया और उस अर्थ में उसे दृष्टि कहा गया और उसी से सम्यग्दृष्टि एवं मिथ्यादृष्टि शब्द निष्पन्न हुए। पुनः आगे चलकर जैनागमों में ही दंसण शब्द श्रद्धान का पर्यायवाची हो गया। आचारांग में 'दंसण' शब्द साक्षीभाव के अर्थ में एवं सूत्रकृतांग में दर्शन (फिलासफी) के अर्थ में प्रयुक्त हुआ। किंतु उत्तराध्ययन में 'णाणेन जाणाई भावे दंसणेण सद्दहे' कहकर दर्शन को श्रद्धान का पर्यायवाची बना दिया गया। जैनकर्म सिद्धांत में ही दर्शन- मोह और दर्शनावरण इन दोनों शब्दों में प्रयुक्त दर्शन शब्द दो भिन्न अर्थों का वाचक बन गया है। 'दर्शनावरण' में रहे हुए 'दर्शन' शब्द का तात्पर्य जहां ऐन्द्रिक और मानसिक संवेदन है वहां 'दर्शन मोह' में 'दर्शन' शब्द का अर्थ दार्शनिक दृष्टिकोण या दर्शन ( फिलासफी) है। सम्प्रदाय भेद से भी जैन परम्परा में शब्दों के अर्थ में भिन्नता आई है। उदाहरण के रूप में 'अचेल' शब्द का अर्थ जहां श्वेताम्बरों में अल्पप-चेल किया तो दिगम्बरों में वस्त्र का अभाव ऐसा किया है।
इसी प्रकार 'पुद्गल' शब्द को लें। 'पुद्गल' शब्द भगवतीसूत्र में व्यक्ति (इण्डीतिजूअल) अथवा व्यक्ति के शरीर के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है, किंतु इसके साथ ही साथ उसी ग्रंथ में 'पुद्गल' शब्द भौतिक पदार्थ के अर्थ में भी प्रयुक्त हुआ है। पुद्गलास्तिकाय में प्रयुक्त पुद्गल शब्द जहां भौतिक द्रव्य (मैटर) का सूचक है, वहीं
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