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________________ सीमा तक उचित तो है-- किंतु पूर्णतः सत्य नहीं है। आज भी बुन्देलखण्ड, मेवाड़, महाराष्ट्र और कर्नाटक में जैनजातियां कृषि पर आधारित हैं और उन्हें कृषिकर्म करते हुए देखा जा सकता है। प्राचीन आगम भगवतीसूत्र में इस प्रश्न पर कि कृषिकर्म में कृमि आदि की हिंसा की जो घटना घटित हो जाती है, उसके लिए गृहस्थ उत्तरदायी है या नहीं , गंभीर रूप से विचार हुआ है। उसमें यह माना गया है कि कोई भी गृहस्थ की जाने वाली हिंसा का उत्तरदायी होता है, हो जाने वाली हिंसा का नहीं। कृषि करते हुए जो प्राणीहिंसा हो जाती है, उसके लिए गृहस्थ उत्तरदायी नहीं है। इसी प्रकार जैनों का अहिंसा का सिद्धांत व्यक्ति को कायर या भगोड़ा नहीं बनाता है। वह गृहस्थ के लिए आक्रामक हिंसा का निषेध करता है, सुरक्षात्मक हिंसा (विरोधी-हिंसा) का नहीं। इस प्रकार हम देखते हैं कि जैनधर्म के सम्बंध में राहुलजी के मन्तव्य आंशिक सत्य होकर भी अपूर्ण या एकांगी है। क्योंकि उन्होंने इस सम्बंध में जैन स्रोतों की खोज-बीन का प्रयत्न नहीं किया है। - जैन एवं बौद्ध पारिभाषिक शब्दों के अर्थ निर्धारण और अनुवाद की समस्या किसी शब्द के अर्थ का निर्धारण करने या उसे पारिभाषित करने में अनेक कठिनाइयां उपस्थित होती हैं। क्योंकि शब्दों के वाच्यार्थ बदलते रहते हैं। साथ ही उनमें अर्थ संकोच और अर्थ विस्तार भी होता है। यह कठिनाई तब और अधिक समस्याप्रद बन जाती है, जब एक ही परम्परा में कालक्रम में शब्द का अर्थ बदल जाता है। कुछ शब्द कालक्रम में अपने पुराने अर्थ को खोजकर नए अर्थ को ग्रहण करते हैं तो कुछ शब्द एक परम्परा से आकर दूसरी परम्परा में मूल अर्थ से भिन्न किसी अर्थ में रुढ़ हो जाता है। आसव शब्द जैन और बौद्ध परम्परा में समान रूप से प्रयुक्त हुआ है, किंतु उसके अर्थ भिन्न हो गए हैं। जैन और बौद्ध परम्परा के अनेक पारिभाषिक शब्दों के साथ स्थिति रही है। कुछ शब्द अन्य परम्परा से जैन परम्परा में आए, किंतु यहां आकर उनका अर्थ बदल गया। पुनः कुछ शब्द जैन एवं बौद्ध परम्परा में भी कालक्रम में अपने पुराने अर्थ कों 90
SR No.006189
Book TitleBauddh Dharm Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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