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________________ वैदिक परम्परा में विकसित गीता की अनेक अवधारणाओं से वैचारिक साम्य रखता है। प्रवृत्तिमार्गी धर्म के अनेक तत्त्व महायान परम्परा में इस प्रकार आत्मसात हो गए कि आगे चलकर उसे भारत में हिन्दू धर्म के सामने अपनी अलग पहचान बनाए रखना कठिन हो गया और उसे हिन्दू धर्म ने आत्मसात कर लिया। जबकि उसी श्रमण धारा का जैनधर्म निवृत्त्यात्मक पक्ष पर बराबर बल देता रहा है और अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखा। संदर्भ : - 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. थेरगाथा, 941-942 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. दशचूलिका 1/11-13 - सुत्तनिपात 2 / 72 बोधिचर्यावतार, 8/99 वही, 8/116 वही 8/109 बोधिचर्यावतार - 8/105 वही - 8/108 श्रीमद्भागवत् 9/44 अंगुत्तरनिकाय बौद्ध दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शन, पृ. 609 गीता, 3/13 वही, 3/12 वही, 5/25, 12/4 वही, 3/18 वहीं, 3/20 वही, 4/8 शिक्षासमुच्चय, अनूदित, धर्मदूत, मई 1941 82
SR No.006189
Book TitleBauddh Dharm Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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