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________________ तो फिर उनमें कार्य-कारण ( सन्तान - सन्तनिए) का सम्बंध कैसे होगा ? कार्य-कारण या प्रतीत्यसमुत्पाद का नियम वस्तुतः परिवर्तनशीलता का द्योतक हैं, न कि उच्छेद का सम्भवतः, राहुलजी ऐसी व्याख्या इसलिए कर गए, ताकि वे बुद्ध के दर्शन को वर्त्तमान भौतिकवादी चौखटें में फिट कर सकें। 17 दूसरे वर्ग ने बुद्ध के मौन, अव्याकृत एवं पिटक - ग्रंथों के कुछ अन्य संदर्भों के आधार पर बुद्ध के आत्मा - सम्बंधी दृष्टिकोण में औपनिषदिक - आत्मा को खोजने का प्रयास किया है। रायज्रडेविड्स, कु. आई.बी. हार्नर, आनंद के कुमारस्वामी एवं डॉ. राधाकृष्णन् का प्रयत्न इसी दिशा में रहा है। डॉ. राधाकृष्णन् का कथन है, उपनिषदें आत्मा के एक आवरण के बाद दूसरे आवरण को दूर करती हुई अन्त में सब वस्तुओं की आधारभूमि तक पहुंचती हैं। इस प्रक्रिया के अंत में वे सार्वभौम व्यापक आत्मा की उपलब्धि करती हैं, जो कि सब सान्त वस्तुओं में से एक भी नहीं है, यद्यपि उन सबकी आधार - भूमि है। बुद्ध का भी वस्तुतः यही मत है, यद्यपि निश्चित रूप से वे इसको कहते नहीं है । " कु. हार्नर और कुमारस्वामी भी लिखते हैं कि बुद्ध के समस्त सिद्धांतवाक्यों में यह कहीं भी नहीं लिखा मिलता कि आत्मा नहीं है। यह आत्मा व्यावहारिक - आत्मा ( जीवात्मा) से, जिसका पुनः पुनः क्षय होता रहता है, भिन्न है। वस्तुस्थिति यह है कि प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष- दोनों प्रकार से आत्मा की प्रतिष्ठा ही की गई है। बार-बार दुहराए गए कथन कि यह मेरी आत्मा नहीं है, आत्मा की स्थापना के सबल प्रमाण हैं। प्रत्येक बौद्ध से यह आशा की जाती है कि वह उस आत्मा का, जो उसकी आत्मा की अपेक्षा प्रधान है, आदर करेगा। यह प्रधान आत्मा ही आत्मा का स्वामी है, या आत्मा का चरम लक्ष्य है। बुद्ध अपने इस कथन में कि मैंने आत्मा की शरण ले ली है, अपनी शरण की ओर संकेत नहीं करते, वरन् वे इसी 'आत्मा' की ओर संकेत करते हैं। इसी 'आत्मा' का वर्णन उनके इन कथनों में भी मिलता है- आत्मा की खोज करो (अत्तानं गवेसेय्याथ), आत्मा को अपना आश्रय और दीपक बनाओ ( अत्तसरण अत्तदीप )। यहां पर महान् आत्मा तथा लघु आत्मा में भेद स्पष्ट हो जाता है, अतः यह निश्चित है कि बुद्ध ने न तो ईश्वर की, न आत्मा की और न शाश्वत की उपेक्षा की है, लेकिन बुद्ध - मन्तव्यों में औपनिषदिक-आत्मा को खोजने का प्रयास भी अनधिकार चेष्टा ही कहा जाएगा। श्री भरतसिंह उपाध्याय के शब्दों में 'हमारा विनम्र मन्तव्य है कि ( इस उपर्युक्त आख्यान के) अत्तानं गवेसेय्याथ (आत्मा को ढूंढो ) में औपनिषद् - 'आत्मा' के उपदेश को देखना 18 48
SR No.006189
Book TitleBauddh Dharm Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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