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________________ अपेक्षाकृत अधिक प्रामाणिकता से हुआ है। इस प्रकार हम देखते हैं कि दर्शन- संग्राहक ग्रंथों की रचना में भारतीय इतिहास में हरिभद्र आदि जैन दार्शनिकों ने निष्पक्ष भाव से और पूरी प्रामाणिकता के साथ अपने ग्रंथों में अन्य दर्शनों का विवरण दिया है। इस क्षेत्र में वे अभी तक अद्वितीय है। दर्शन संग्राहक ग्रंथों की यह परम्परा आधुनिक युग में भी देखी जाती है। भारतीय दर्शन पर लिखे गए समकालीन लेखकों- सुरेंद्र नाथ दास गुप्ता, डॉ. राधाकृष्णन, प्रो. जदुनाथ सिन्हा, प्रो. चंद्रधर शर्मा, डॉ. उमेश मिश्र, पं. बलदेव उपाध्याय आदि के ग्रंथों में बौद्ध दर्शन और उसकी विभिन्न निकायों का उल्लेख उपलब्ध होता है, यद्यपि प्रो. राधाकृष्णन् ने बौद्ध दर्शन की समीक्षा भी की है, किंतु अधिकांश लेखकों का प्रयत्न यथावत् प्रस्तुतिकरण का रहा है। समीक्षा में भी शिष्ट भाषा का प्रयोग दर्शन के क्षेत्र में अपनी दार्शनिक अवधारणाओं की पुष्टि तथा विरोधी अवधारणाओं के खण्डन के प्रयत्न अत्यंत प्राचीनकाल से होते रहे हैं। प्रत्येक दर्शन अपने मन्तव्यों की पुष्टि के लिए अन्य दार्शनिक मतों की समालोचना करता है। स्व-पक्ष का मण्डन तथा पर-पक्ष का खण्डन- यह दार्शनिकों की सामान्य प्रवृत्ति रही है । हरिभद्र भी इसके अपवाद नहीं हैं। फिर भी उनकी यह विशेषता है कि अन्य दार्शनिक मतों की समीक्षा में वे सदैव ही शिष्ट भाषा का प्रयोग करते हैं तथा विरोधी दर्शनों के प्रवर्तकों के लिए भी बहुमान प्रदर्शित करते हैं। इसके कुछ उदाहरण हमें उनके ग्रंथ 'शास्त्रवार्तासमुच्चय' में देखने को मिल जाते हैं। अपने ग्रंथ ‘शास्त्रवार्तासमुच्चय' के प्रारम्भ में ही ग्रंथ-रचना का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए वे लिखते हैं य श्रुत्वा सर्वशास्त्रेषु प्रायस्तत्त्वविनिश्चयः । जायते द्वेषशमनः स्वर्गसिद्धिसुखावह ॥ अर्थात् इसका अध्ययन करने से अन्य दर्शनों के प्रति द्वेष- बुद्धि समाप्त होकर तत्त्व का बोध हो जाता है। इस ग्रंथ में वे कपिल को दिव्य - पुरुष एवं महामुनि के रूप में सूचित करते हैं- कपिलो दिव्यो हि स महामुनिः (शास्त्रवार्तासमुच्चय, 237 ) । इसी प्रकार वे बुद्ध को भी अर्हत, महामुनि, सुवेद्यवत् (वही, 465-466 ) कहते हैं। यहां हम देखते हैं कि जहां एक ओर अन्य दार्शनिक अपने विरोधी दार्शनिकों का खुलकर परिहास 14
SR No.006189
Book TitleBauddh Dharm Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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