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________________ शौरसेनी प्राकृत का गौरव करना अच्छी बात है, लेकिन उसे ही अधिक सौष्ठवपूर्ण मानकर दूसरी प्राकृतों को उससे नीचा मानने की वृत्ति सत्यान्वेषी विद्वत् पुरुषों को शोभा नहीं देती है। 3. 'बहुत सारी अच्छी बातें अर्धमागधी में नहीं हैं, जबकि शौरसेनी में __सुरक्षित हैं, अनेक बातों का स्पष्टीकरण आज शौरसेनी के 'षट्खण्डागम' और 'धवला' से ही करना पड़ता है'. यह सत्य है कि जैन कर्म-सिद्धान्त की अनेक सूक्ष्म विवेचनाएँ 'षट्खण्डागम' एवं उसकी 'धवला टीका' में सुरक्षित हैं; किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि अर्धमागधी आगम साहित्य में अच्छी बातें नहीं हैं। शौरसेनी आगम-साहित्य की अपेक्षा अर्धमागधी आगम साहित्य परिमाण में पाँच गुने से अधिक है और उसमें भी अनेक अच्छी बातें निहित हैं। सम्पूर्ण अर्धमागधी और महाराष्ट्री का साहित्य तो शौरसेनी साहित्य की अपेक्षा दस गुने से भी अधिक होगा। अर्धमागधी आगम साहित्य में 'आचाराङ्ग' का एक-एक सूक्त ऐसा है, जो बिन्दु में सिन्धु को समाहित करता है, क्या उसके समकक्ष कोई ग्रन्थ शौरसेनी में है? आज 'आचाराङ्ग' ही एकमात्र ऐसा ग्रन्थ है, जिसमें भगवान् महावीर के मूलवचन सुरक्षित हैं। यह सत्य है कि समयसार आत्म-अनात्म विवेक का और 'षट्खण्डागम' तथा उसकी 'धवला टीका' कर्म-सिद्धान्त का गम्भीर विवेचन प्रस्तुत करती हैं; किन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अर्धमागधी आगम में सुरक्षित जिनवचनों के आधार पर ही दिगम्बर विद्वानों ने इन सिद्धान्तों का विकास किया है और वे उससे परवर्ती हैं। पुनः, यदि जैन आचार-दर्शन एवं संस्कृति के विकास के इतिहास को समझना है, तो हमें अर्धमागधी साहित्य का ही सहारा लेना पड़ेगा। वे उन नींव के पत्थरों के समान हैं, जिन पर जैनदर्शन एवं संस्कृति का महल खड़ा हुआ है। नींव की उपेक्षा करके मात्र शिखर को देखने से हम जैनधर्म और सिद्धान्तों के इतिहास को नहीं समझ सकते हैं। पुनः, अर्धमागधी साहित्य में भी 'विशेषावश्यकभाष्य' जैसे गम्भीर दार्शनिक चर्चा करने वाले अनेक ग्रन्थ हैं। पुनः, 'बृहत्कल्पभाष', 'व्यवहारभाष्य', 'निशीथभाष्य' जैसे जैन आचार के उत्सर्ग एवं अपवाद मार्ग की तलस्पर्शी विवेचना करने वाले तथा उसके विकास क्रम को स्पष्ट करने वाले कितने ग्रन्थ शौरसेनी में हैं? जिस धवला टीका का इतना गुणगान किया जा
SR No.006188
Book TitlePrakrit Bhasha Ka Prachin Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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