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________________ 5 प्राकृत विद्या में प्रो. टॉटियाजी के नाम से प्रकाशित उनके व्याख्यान के विचारबिन्दुओं की समीक्षा (अर्धमागधी आगम साहित्य कुछ सत्य और तथ्य) डॉ. सुदीपजी ने प्राकृतविद्या, जुलाई-सितम्बर 1996 में डॉ. टॉटियाजी के व्याख्यान में उभरकर आये 14 विचारबिन्दुओं को अविकल रूप से प्रस्तुत करने का दावा किया है। यहाँ उनकी समीक्षा करना इसलिए अपेक्षित है कि उनके नाम पर प्रसारित भ्रान्तियों का निरसन हो सके। नीचे हम क्रमशः एक-एक बिन्दु की समीक्षा करेंगे। 1. 'प्राचीनकाल में शौरसेनी अखिल भारतीय भाषा थी?' प्रथम तो उत्तर और दक्षिण के कुछ दिगम्बर विद्वानों द्वारा शौरसेनी के ग्रन्थ लिखे जाने से, अथवा कतिपय नाटकों में मागधी आदि अन्य प्राकृतों के साथ-साथ शौरसेनी के प्रयोग होने से यह सिद्ध नहीं हो जाता कि शौरसेनी अखिल भारतीय भाषा थी। यदि इन तर्कों के आधार पर एक बार हम यह मान भी लें कि शौरसेनी अखिल भारतीय भाषा थी, तो क्या इससे यह सिद्ध हो जाता है कि मागधी या महाराष्ट्री प्राकृत अखिल भारतीय भाषाएँ नहीं थीं? प्राचीन काल में तो मागधी ही अखिल भारतीय भाषा थी। यदि शौरसेनी अखिल भारतीय भाषा बनी, तो वह भी मागधी के पश्चात् ही बनी है, क्योंकि अशोक के सम्पूर्ण अभिलेख मुख्यतः मागधी में ही हैं। यह सत्य है कि उन पर तद् तद् प्रदेशों की लोकबोलियों का प्रभाव देखा जाता है, फिर भी उससे मागधी के अखिल भारतीय भाषा में होने में कोई कमी नहीं आती। वास्तविकता तो यह है कि मौर्यकाल और उसके पश्चात् 71
SR No.006188
Book TitlePrakrit Bhasha Ka Prachin Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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