SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1. भगवं च णं अद्धमागहीए भासा धम्ममाइक्खई । - समवायांग, समवाय 34, सूत्र 22 2. तए णं समणे भगवं महावीरे कुणिअस्स भंभसारपुत्तस्स अद्धमागहाए भासाए भासिता अरिहा धम्मंपरिकहेई। - औपपातिकसूत्र 1. 3. गोयमा ! देवा णं अद्धमागहीए भासाए भासंति स वि य णं अद्धमागहा भासा भासिज्जमाणी विसज्जति।-भगवई, लाडनूँ, शतक 5, उद्देशक 4, सूत्र 93. 4. तए णं समये भगवं महावीरे उसभदत्तमाहणस्स देवाणंदामाहणीए तीसे य महति महलियाए इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए.... सव्व भाषाणु.... गमिणिय सरस्सईए जोयणणीहारिणासरेणं अद्धमागहाए भासाए भासए धम्मं परिकहेई। भगवई, लाडनूँ, शतक 9, उद्देशक 33, सूत्र 149. 5. तए णं समये भगवं महावीरे जामालिस्स खत्तियकुमारस्य ... अद्धमागहाए भासाए भासइ धम्मं परिकहेइ। -भगवई, लाडनूँ, शतक 9, उद्देशक 33, सूत्र 163. 6. सव्वसत्तसमदरिसीहिं अद्धमागहाए भासाए सुत्तं उवदिद्वं । - आचारांगचूर्णि, जिनदासगणि, पृ.255. मात्र इतना ही नहीं, दिगम्बर - परम्परा में मान्य आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थ ‘बोधपाहुड’, जो स्वयं शौरसेनी में निबद्ध है, उसकी टीका में दिगम्बर आचार्य श्रुतसागरजी लिखते हैं कि भगवान् महावीर ने अर्धमागधी भाषा में अपना उपदेश दिया था। प्रमाण के लिए उस टीका के हिन्दी अनुवाद का यह अंश प्रस्तुत है। 'अर्ध मगधदेश की भाषात्मक' और अर्ध सर्वभाषात्मक भगवान् की ध्वनि खिरती है। शंका - अर्धमागधी भाषा देवकृत अतिशय कैसे हो सकती है, क्योंकि भगवान् की भाषा ही अर्धमागधी है ? उत्तर-मागध देव के सान्निध्य में होने से। आचार्य प्रभाचन्द्र ने 'नन्दीश्वर भक्ति' के अर्थ में लिखा है- 'एक योजन तक भगवान् की वाणी स्वयमेव सुनायी देती है। उसके आगे संख्यात् योजनों तक उस दिव्य ध्वनि का विस्तार मगध जाति के देव करते हैं। अतः, अर्धमागधी भाषा देवकृत है।' (षट्प्राभृतम्, चतुर्थ बोधपाहुड - टीका, गाथा 32, पृ.119) — मात्र यही नहीं, वर्त्तमान में भी दिगम्बर - परम्परा के महान् सन्त एवं आचार्य विद्यासागरजी के प्रमुख शिष्य मुनिश्री प्रमाणसागरजी अपनी पुस्तक जैनधर्म-दर्शन, (प्रथम संस्करण) पृ. 40 पर लिखते हैं कि 'उन भगवान् महावीर का उपदेश सर्वग्राह्य अर्धमागधी भाषा में हुआ।'
SR No.006188
Book TitlePrakrit Bhasha Ka Prachin Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy