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________________ प्रकाशकीय डॉ.सागरमल जैन 'जैन विद्या एवं भारतीय विधाओं' के बहुश्रुत विद्वान् हैं। उनके विचार एवं आलेख विगत 50 वर्षों से यत्रतत्र विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और संस्कृत, प्राकृत एवं हिन्दी के विभिन्न ग्रन्थों की भूमिकाओं के रूप में प्रकाशित होते रहे हैं। उन सबको एकत्रित कर प्रकाशित करने के प्रयास भी अल्प ही हुए हैं। प्रथमतः, उनके लगभग 100 आलेख सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ में और लगभग 120 आलेख- श्रमण के विशेषांकों के रूप में 'सागर जैन विद्या भारती' में अथवा जैन धर्म एवं संस्कृति के नाम से सात भागों में प्रकाशित हुए हैं, किन्तु डॉ. जैन के लेखों की संख्या 320 से अधिक है, साथ ही उन्होंने संस्कृत एवं प्राकृत के तथा जैन धर्म और संस्कृति से संबंधित अनेक ग्रन्थों की विस्तृत भूमिकाएं भी लिखी है। उनका यह समस्त लेखन प्रकीर्ण रूप से बिखरा पड़ा है। विषयानुरूप उसका संकलन भी नहीं हुआ है। उनके ग्रन्थ भी अब पुनः प्रकाशन की अपेक्षा रख रहे हैं, किन्तु छह-सात हजार पृष्ठों की इस विपुल सामग्री को समाहित कर प्रकाशित करना हमारे लिए संभव नहीं था। साध्वीवर्या सौम्यगुणाश्रीजी का सुझाव रहा कि प्रथम क्रम में उनके विकीर्ण आलेखों को ही एक स्थान पर एकत्रित कर प्रकाशित करने का प्रयत्न किया जाये। उनकी यह प्रेरणा हमारे लिए मार्गदर्शक बनी और हमने डॉ.सागरमल जैन के आलेखों को संगृहीत करने का प्रयत्न किया। कार्य बहुत विशाल है, किन्तु जितना सहज रूप से प्राप्त हो सकेगा-उतना ही प्रकाशित करने का प्रयत्न किया जाएगा। अनेक प्राचीन पत्र-पत्रिकाएं पहले हाथ से ही कम्पोज होकर प्रिन्ट होती थीं, साथ ही वे विभिन्न आकारों और विविध प्रकार के अक्षरों में मुद्रित होती थीं, उन सबको एक साइज में और एक ही फोण्ट में प्रकाशित करना भी कठिन था। अतः, उनको पुनः प्रकाशित करने हेतु उनका पुनः टंकण एवं प्रूफरीडिंग आवश्यक था। हमारे पुनः टंकण के कार्य एवं प्रूफ संशोधन के कार्य में सहयोग किया छाजेड़ प्रिन्टरी ने। हम उनके एवं मुद्रक छाजेड़ प्रिन्टरी के भी आभारी हैं। नरेन्द्र जैन एवं ट्रस्ट मण्डल प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर
SR No.006188
Book TitlePrakrit Bhasha Ka Prachin Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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