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________________ अर्धमागधी आगम साहित्य कुछ सत्य और तथ्य अर्धमागधी आगम प्राकृत साहित्य का प्राचीनतम रूप भारत की तीन प्राचीन भाषाएँ हैं- संस्कृत, प्राकृत और पाली। उनमें प्राकृत भाषा में निबद्ध जो साहित्य उपलब्ध है, उसमें अर्धमागधी आगम साहित्य प्राचीनतम हैं। यहाँ तक कि आचाराङ्ग का प्रथम श्रुतस्कन्ध और ऋषिभाषित तो अशोककालीन प्राकृत अभिलेखों से भी प्राचीन हैं। ये दोनों ग्रन्थ लगभग ई.पू. पांचवी-चौथी शताब्दी की रचनाएँ हैं। आचाराङ्ग की सूत्रात्मक औपनिषदिक् शैली उसे उपनिषदों का निकटवर्ती और भगवान् महावीर की स्वयं की वाणी सिद्ध करती है। भाव, भाषा और शैली-तीनों के आधार पर यह सम्पूर्ण पाली और प्राकृत साहित्य में प्राचीनतम है। आत्मा के स्वरूप एवं अस्तित्व सम्बन्धी इसके विवरण औपनिषदिक विवरणों के अनुरूप हैं। इसमें प्रतिपादित महावीर का जीवनवृत्त भी अलौकिकता और अतिशयता रहित है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह विवरण उस व्यक्ति द्वारा लिखा गया है, जिसने स्वयं उनकी जीवनचर्या को निकटता से देखा और जाना है। अर्धमागधी आगमसाहित्य में भी सूत्रकृताङ्ग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के छठवें अध्याय, आचाराङ्गचूला और कल्पसूत्र में भी महावीर की जीवनचर्या का उल्लेख है, किन्तु वह भी अपेक्षाकृत रूप में आचाराङ्ग के प्रथम श्रुतस्कन्ध की अपेक्षा परवर्ती है, क्योंकि उनमें क्रमशः अलौकिकता, अतिशयता और अतिरंजना का प्रवेश होता गया है। इसी प्रकार ऋषिभाषित की साम्प्रदायिक अभिनिवेश से रहित उदारदृष्टि तथा भाव और
SR No.006188
Book TitlePrakrit Bhasha Ka Prachin Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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