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________________ कृत्रिम रूप से पाँचवी शती में शौरसेनी आगमों से निर्मित' जैसे मिथ्या आरोप किसने लगाये, विवाद किसने प्रारम्भ किया और सदाशयता का अभाव किसमें है। क्या जो व्यक्ति व्यंग्य में अपनी पत्रिका के सम्पादकीय में विद्वानों को अंगूठाछाप बताये और उनकी तुलना बिच्छू से करे, उसे सदाशयी माना जायेगा, स्वयं ही विचारणीय है। वस्तुतः, ब्राह्मी लिपि में 'न्' और 'ण' के लिए एक ही आकृति होती है- यह कहकर भाई सुदीपजी ने शौरसेनी की प्राचीनता को सिद्ध करने के लिए पं. ओझाजी के नाम पर एक छक्का मारने का प्रयास किया, उन्हें क्या पता था कि 'कैच' हो जायेगा और 'आउट' होना पड़ेगा। ***
SR No.006188
Book TitlePrakrit Bhasha Ka Prachin Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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