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________________ 6. पं.जुगलकिशोरजी मुख्तार, इन्होंने अनेक तर्कों के आधार पर ई.पू.528 परम्परागत मान्यता को पुष्ट किया। 7. मुनि श्री कल्याणविजय, इन्होंने भी परम्परागत मान्यता की पुष्टि करते हुए उसकी असंगति के निराकरण का प्रयास किया है। 8. प्रो.पी.एच.एल.झगरमोंट,23 इनके तर्क का आधार जैन परम्परा में तिष्यगुप्त की संघभेद की घटना का जो महावीर के जीवनकाल में उनके कैवल्य के 16वें वर्ष में घटित हुई, बौद्ध संघ में तिष्यरक्षिता द्वारा बोधिवृक्ष को सुखाने तथा संघभेद की घटना से जो अशोक के राज्यकाल में हुई थी समीकृत कर लेना है। 9. वी.ए.स्मिथ, ई.पू.527 इन्होंने सामान्यतया प्रचलित अवधारणा को मान्य कर लिया है। 10.प्रो.के.आर.नारमन, लगभग ई.पू.400 भगवान महावीर की निर्वाण तिथि का निर्धारण करने हेतु जैन साहित्यिक स्रोतों के साथ-साथ हमें अनुश्रुतियों और अभिलेखीय साक्ष्यों पर भी विचार करना होगा। पूर्वोक्त मान्यताओं में कौनसी मान्यता प्रामाणिक है, इसका निश्चय करने के लिए हम तुलनात्मक पद्धति का अनुसरण करेंगे और यथासम्भव साक्ष्यों को प्राथमिकता देंगे। भगवान महावीर के समकालिक व्यक्तियों में भगवान बुद्ध, बिम्बसार, श्रेणिक और अजातशत्रु कूणिक के नाम सुपरिचित हैं। जैन स्रोतों की अपेक्षा इनके सम्बन्ध में बौद्ध स्रोत हमें अधिक जानकारी प्रदान करते हैं। जैन स्रोतों के अध्ययन से भी इनकी समकालिकता पर कोई सन्देह नहीं किया जा सकता है। जैन आगम साहित्य बुद्ध के जीवन वृत्तान्त के सम्बन्ध में प्रायः मौन है, किन्तु बौद्ध त्रिपिटक साहित्य में महावीर और बुद्ध की समकालिक उपस्थिति के अनेक सन्दर्भ हैं। यहाँ हम उनमें से केवल दो प्रसंगों की चर्चा करेंगे। प्रथम प्रसंग में दीर्घनिकाय का वह उल्लेख आता है, जिसमें अजातशत्रु
SR No.006187
Book TitleBhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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