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जन्मस्थान के रूप में मान्यता 1948 में मिली। इसके पूर्व भी विद्वानों ने वैशाली के निकट और विदेह क्षेत्र में महावीर का जन्मस्थान होने की बात कही है। यह निश्चित है कि लगभग 15 - 16वीं शती से श्वेताम्बर परम्परा में लछवाड़ के समीपवर्ती क्षेत्र को महावीर के जन्मस्थान मानने की परम्परा विकसित हुई है। भगवान् महावीर ने अर्धमागधी भाषा में अपना प्रवचन दिया था, इसलिये वे मगध क्षेत्र के निवासी होने चाहिये, ऐसी जो मान्यता लछवाड़ के पक्ष में दी जाती है वह भी समुचित नहीं है। यह स्मरण रखना चाहिए कि महावीर की भाषा मागधी न होकर अर्धमागधी है। यदि महावीर का जन्म और विचरण केवल मगध क्षेत्र में ही हुआ होता, तो वे मागधी का ही उपयोग करते, अर्धमागधी का नहीं । अर्धमागधी स्वयं ही इस बात का प्रमाण है कि उनकी भाषा में मागधी के अतिरिक्त अन्य समीपवर्ती क्षेत्रों की भाषाओं एवं बोलियों के शब्द भी मिले हुए थे। मैं जमुई अनुमण्डल को महावीर का साधना स्थल एवं केवलज्ञानस्थल मानने में तो सहमत हूँ, किन्तु जन्मस्थल मानने में सहमत नहीं हूँ, अतः महावीर का जन्मस्थल वैशाली के समीप वर्त्तमान वासुकुण्ड ही अधिक प्रामाणिक लगता है। जैन समाज को उस स्थान के सम्यक् विकास हेतु प्रयत्न करना चाहिए।
संदर्भः
1. समणे भगवं महावीरे नाए, नायपुत्ते, नायकुलचंदे, विदेहे, विदेहदिन्ने, विदेहजच्चे विदेह सूमाले तीसं वासाइं विदेहंसि कट्टु-कल्पसूत्र 110 (प्राकृत भारती संस्मरण पृ.160)
2. वही, पृ. 160
3. णायसंडवणे उज्जागे जेणेव असोकवरपायवे - कल्पसूत्र 113 ( प्राकृत भारती संस्करण, पृ.170) एवं से उदाहु अणुत्तरणाणी अणुत्तरदसी अणुत्तरणाणदंसणधरे ।
अरहा-णायपुत्ते भगवं वेसालिए वियाहिए । । - सूत्रकृतांग- 1/2/3/22.
4. देखें - कल्पसूत्र 58, 67, 69 (प्रा. भा. सं., पृ. 96, 114 आदि.)
5. देखें - बुद्धकालीन भारतीय भूगोल, भरत सिंह, पृ. 313.
6. कल्पसूत्र 119 (प्राकृत भारती संस्करण, पृ.184).
7. ज्ञातव्य है कि आचारांगसूत्र में भी दीक्षा ग्रहण करते समय महावीर यह निर्णय लेते हैं कि मैं सबके प्रति क्षमाभाव रखूंगा। (सम्मं सहिस्सामि इवमिस्सामि).
8. आचारांग - 1/174;5/55, 6/30.
9. वही, 1 / 37, 68.
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