________________
मामा या नाना के गांव के निवासस्थान के आधार पर किसी व्यक्ति को तद्नाम से पुकारे जाने की परम्परा नहीं रही है। दूसरे, हम यदि यह भी मान लें कि महावीर का ननिहाल वैशाली था और इसलिये वे वैशालिक कहे जाते हैं, तो एक सम्भावना यह भी मानी जा सकती है कि अपने ननिहाल में जन्म होने के कारण उन्हें वैशालिक कहा गया हो। माता के पितृगृह अथवा सन्तान के ननिहाल में जन्म लेने की परम्परा तो वर्तमान में भी देखी जा सकती है, किन्तु जैसा पूर्व में कहा है कि उन्होंने तीस वर्ष तक 'विदेह' में निवास करने के पश्चात् दीक्षा ग्रहण की (कल्पसूत्र 110, प्रा.भा.सं.,पृ.160) इस आधार पर यह बात पूर्णतः निरस्त हो जाती है कि उन्हें अपने ननिहाल के कारण वैशालिक कहा जाता था।
एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह उठाया जाता है कि महावीर के पिता राजा थे, किन्तु प्रश्न यह है कि वे किस प्रकार के राजा थे- स्वतन्त्र राजा थे या गणतंत्र के राजा थे। उन्हें स्वतन्त्र राजा नहीं माना जा सकता, क्योंकि कल्पसूत्र में अनेक स्थलों पर तो 'सिद्धत्थे खत्तिये' अर्थात् सिद्धार्थ क्षत्रिय ही कहा गया है। राजगृह का मगध राजवंश साम्राज्यवादी था, जबकि वैशाली की परम्परा गणतंत्रात्मक थी। गणतंत्र में तो समीपवर्ती क्षेत्रों के छोटे-छोटे गांवों में स्वायत्त शासन-व्यवस्था सम्भव थी, परन्तु साम्राज्यवादी राजतंत्रों में यह सम्भावना नहीं हो सकती। अतः, हम नालंदा के समीपवर्ती कुण्डलपुर को अथवा लछवाड़ को महावीर का जन्मस्थान एवं पितृगृह स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि मगध का साम्राज्य इतना बड़ा था कि उसके निकटवर्ती नालंदा या लछवाड़ में स्वतंत्र राजवंश सम्भव नहीं। वैशाली गणतंत्र में उसकी महासभा में 7707 गणराजा थे। यह उल्लेख भी त्रिपिटक साहित्य में मिलता है, अतः महावीर के पिता सिद्धार्थ को गणराजा मानने में कोई आपत्ति नहीं आती। क्षत्रियकुण्ड के वैशाली के समीप होने से या उसका अंगीभूत होने से महावीर को वैशालिक कहा जाना तो सम्भव हो सकता है। यदि महावीर का जन्म नालंदा के समीप तथाकथित कुण्डलपुर में हुआ होता, तो उन्हें या तो नालंदीय या राजगृहिक- ऐसा विशेषण मिलता, वैशालिक नहीं। जहां तक साहित्यिक प्रमाणों का प्रश्न है गणनी ज्ञानमती माताजी एवं प्रज्ञाश्रमणी चंदनामतीजी ने नालंदा के समीपवर्ती तथाकथित कुण्डलपुर को महावीर की जन्मभूमि सिद्ध करने के लिए पुराणों और दिगम्बरमान्य आगम ग्रन्थों से कुछ सन्दर्भ दिये हैं। राजमलजी जैन ने इसके प्रतिपक्ष में 'महावीर की जन्मभूमि कुण्डपुर' नामक पुस्तिका लिखी और उन प्रमाणों की समीक्षा भी